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आपकी विरासत

मीरा सिंह ‘मीरा’
बक्सर (बिहार)
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साहस शौर्य और
पराक्रम के प्रतीक,
जीवन से भरपूर
बलिष्ठ कंधे पर बैठकर,
मुझे दुनिया के
सर्वोच्च शिखर पर,
आसीन होने का
गौरव हासिल था।

आपको देखकर
थके-माँदे कदमों को,
हौंसला मिल जाता था
चेहरे पर नव किरणों की,
आभा बिखर जाती थी
आलस्य की जकड़न,
ढीली पड़ जाती थी
अकर्मण्यता आपको,
रास नहीं आती थी
आपकी खातिर,
यूँ ही मैं अक्सर
आप जैसा होने का,
कुछ स्वांग करती थी।

हँसी का मुखौटा
चेहरे पर लगा लेती थी,
ठहाके मारकर हँसती थी
सहसा अपने अंदर,
कुछ हलचल-सी
महसूस करती थी,
मेरी शिथिल रगों में
दौड़ने लगता था जोश,
मैं विस्मित हो जाती थी
यक़ीनन खून आपका थी,
पर आप जैसी नहीं थी।

आप कभी रुकना
पसंद नहीं किए,
और मैं दो कदम
चलना गवारा नहीं की,
आप कभी किसी से
हारना नहीं जानते थे,
और मैं लड़ना नहीं जानी
आज भी मुझे स्मरण है,
आपके शब्दकोश में
‘नामुमकिन’ शब्द नहीं था,
और मुझमें आपके जैसा
साहस, धैर्य, पराक्रम
कभी नहीं था।

वक्त की रफ्तार में
जाने कब और कैसे,
वो तमाम आदतें
जो आपकी विरासत थी,
मुझमें रेंगती हुई
महसूस होती हैं॥

परिचय-बक्सर (बिहार) निवासी मीरा सिंह का साहित्यिक उपनाम ‘मीरा’ है। १ अगस्त १९७२ को ग्राम-नसरतपुर (जिला-आरा, बिहार) में जन्मीं और वर्तमान में डुमराँव (बक्सर) में बसेरा है। आपको भाषा ज्ञान-हिन्दी, अंग्रेजी और भोजपुरी का है तो पूर्ण शिक्षा एम.ए. और बी.एड. है। कार्यक्षेत्र- सरकारी विद्यालय में मनोविज्ञान विषय में शिक्षक का है। सामाजिक गतिविधि में लोगों में जागरूकता लाने वाले कार्यक्रमों में सहभागिता है। कहानी, लघुकथा, कविता और व्यंग्य लेखन आपकी विधा है। प्रकाशन के अंतर्गत अब तक ४ किताबें (अहसासों की कतरन- काव्य संग्रह, बचपन की गलियाँ-बाल काव्य संग्रह, कुर्सी और कोरोना-व्यंग्य संकलन एवं बच्चों की दुनिया-बाल काव्य संग्रह) प्रकाशित हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में करीब ३० साल से आपकी रचनाएँ प्रकाशित हो रही हैं। लेखनी को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो विद्यावाचस्पति सम्मान, श्रीमती सरला अग्रवाल स्मृति सम्मान, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शिक्षक शिरोमणि पुरस्कार (पटना), अपराजिता सम्मान २०१८ और २०२३, पाती लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार, बाल साहित्य शोध संस्थान (दरभंगा) द्वारा रामवृक्ष बेनीपुरी शिखर सम्मान व बाल कहानी प्रतियोगिता में प्रथम के अतिरिक्त अन्य पुरस्कार-सम्मान आपको मिले हैं। निःस्वार्थी, कर्मठ और संवेदनशील शिक्षक-साहित्यकार के रूप में चर्चित होना इनकी उपलब्धि है। मीरा सिंह ‘मीरा’ की लेखनी का उद्देश्य दुनिया को खूबसूरत बनाने की कोशिश, दबे-कुचले लोगों की आवाज बनना, आने वाली पीढ़ी में समझ विकसित करके योग्य नागरिक बनने में सहयोग करना हैं। मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा और साहिर लुधियानवी पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो आसपास का माहौल, सामाजिक विद्रूपताएं, विषम परिस्थितियाँ और प्रकृति में घटित घटनाएं प्रेरणापुंज हैं। ‘मीरा’ की विशेषज्ञता अनकही बातों को समझने में कभी चूक नहीं होना व किसी की पीड़ा समझने व महसूसने का ईश्वरीय वरदान है। आपका जीवन लक्ष्य-समाज में मिले हर किरदार को शानदार ढंग से निभाते हुए जागरूक, सुसंस्कृत और संवेदनशील समाज बनाने में अहम भूमिका निभाना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“फ़ौजी परिवेश में पली-बढ़ी हूँ। देश मुझे जान से प्यारा है और हिंदी तो मेरी माँ जैसी है। इसके प्रचार-प्रसार के लिए जितना भी करूं, जो भी करूं, कम होगा। भाषा के रूप में हिंदी मैट्रिक तक ही पढ़ी है, पर लेखन हिंदी में करती हूँ, क्योंकि हिंदी मेरे हृदय की भाषा है।”