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आरक्षण:व्यवस्था में परिवर्तन आवश्यक

रोहित मिश्र
प्रयागराज(उत्तरप्रदेश)
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क्या आरक्षण का लाभ सभी वंचितों को मिल रहा है ? इसका जवाब होगा-नहीं,तो इसके लिए अनारक्षित वर्ग जिम्मेदार है ? वो क्यों होगा ? उसका आरक्षण से क्या लेना-देना है ?
आरक्षण के निर्माण का उद्देश्य वंचित, शोषित, पिछड़े वर्ग को मुख्यधारा में लाना था,पर आज आरक्षित वर्ग के समुदाय के लोग अज्ञानता के कारण विद्यालय तक ही बच्चों को नहीं भेजते हैं।
आज आरक्षित वर्ग के नाम पर राजनीति करने वाले करोड़ों-अरबो की कोठियों में जीवन गुजार रहे हैं, पर जिस आरक्षित वर्ग को हक मिलना था,वो आज भी मलिन बस्तियों में अपना जीवन काट रहा है।
आरक्षित वर्ग का विकास कब तक होगा ?
आरक्षित वर्ग का संपूर्ण विकास तब तक नहीं हो सकता,जब तक आरक्षण प्रक्रिया के कोटे के अंदर कोटे वाली प्रक्रिया लागू नहीं होगी। यानि आरक्षित वर्ग के हर समुदाय को आरक्षण की प्रक्रिया का लाभ मिलना या देना।
आप न्यूनतम संख्या के आधार पर किसी समुदाय की उपेक्षा नहीं कर सकते हैं। असल बात ये है कि आरक्षित वर्ग के हर तबके को आरक्षण का फायदा मिलना चाहिए,पर जैसे ही आरक्षण पर विचार-विमर्श की बात उठती है,वैसे ही राजनीतिक रोटियाँ सेकने वाले तुरंत सक्रिय हो जाते हैं,विरोध करने लगते हैं।
इस मुद्दे पर एक तबका कहेगा कि ये आरक्षित वर्ग में मतभेद पैदा करने के लिए किया जा रहा है,तो वकालत करने वाला तबका कह सकता है कि आरक्षण के मुद्दे से जातिवाद को बढ़ावा मिलता है।
कौन आदमी नहीं चाहता कि वो अपने पैरों पर खड़ा हो,आत्मनिर्भर हो ? हर आदमी चाहता है,लेकिन कुछ राजनीतिक दल नहीं चाहते कि आरक्षित वर्ग का विकास हो,क्योंकि उनके पास यही मुद्दे हैं,जिससे उनकी राजनीतिक रोटियाँ सेकी जा रही है।
बिना संशोधन के आरक्षण द्वारा आरक्षित वर्ग का विकास संभव नहीं है। अगर संभव होता तो पिछले ७० सालों से इसका असर जरूर दिखता।
आरक्षण आवश्यक है,किन्तु लाभ आरक्षित वर्ग के संपूर्ण समाज को मिलना अतिआवश्यक है। इसके लिए कोटे में कोटा प्रणाली जरूरी है,तो महिला आरक्षण की प्रक्रिया भी जरूरी है। महिलाओं का विकास २ परिवारों के विकास से जुड़ा होता है।इसलिए महिला आरक्षण भी बेहद जरूरी है।
इन सभी मुद्दों का विरोध सिर्फ स्वार्थी लोग ही कर सकते हैं।
जो कहते हैं कि आरक्षण तो १००-२०० साल तक जरूरी है,तो वो चाहते ही हैं कि आरक्षित वर्ग पिछ़ड़ा रहे,ताकि उसकी आगे की पीढ़ियों के लिए भी राजनीतिक जमीन तैयार रहे।

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