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इक जंग लड़नी शेष है

नताशा गिरी  ‘शिखा’ 
मुंबई(महाराष्ट्र)
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इक जंग लड़नी शेष है,
खुद को नमन अभिषेक है।

इस जिंदगी रेस में,
आतंक के परिवेश में।

फल-फूल रहा है जो,
कातिलों के आगोश में।

मदहोश है वो,
खंजरों के आवेश में।

भूल गए कुर्बानियां,
आजाद,भगत सुखदेव की।

याद करानी होगी उनको,
भूल गये हैं जो उन सबको।

जोहर वाली दिवाली,
वो जलियाँ वाली होली।

चलो बना लें इक काफिला,
ललकार रही है हम सबको।

रिश्वतखोरी,घूसखोरी,
भाई भतीजे की भी बोली।

विपक्ष में ही जा खड़ी हुई,
हमारी अपनी ही हमजोली।

आसान तो नही शस्त्र उठाना,
फिर भी है गीता की वाणी दुहराना।

जिन्दगी महाभारत सी रण-क्षेत्र है,
न जाने कितने रखते दुर्योधन-से नेत्र हैं।

न अर्जुन,न कृष्ण अब किसी वेष में,
बस अब इक जंग लड़नी है विशेष में॥

परिचय-नताशा गिरी का साहित्यिक उपनाम ‘शिखा’ है। १५ अगस्त १९८६ को ज्ञानपुर भदोही(उत्तर प्रदेश)में जन्मीं नताशा गिरी का वर्तमान में नालासोपारा पश्चिम,पालघर(मुंबई)में स्थाई बसेरा है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली महाराष्ट्र राज्य वासी शिखा की शिक्षा-स्नातकोत्तर एवं कार्यक्षेत्र-चिकित्सा प्रतिनिधि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की भलाई के लिए निःशुल्क शिविर लगाती हैं। लेखन विधा-कविता है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-जनजागृति,आदर्श विचारों को बढ़ावा देना,अच्छाई अनुसरण करना और लोगों से करवाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज भी यही हैं। विशेषज्ञता-निर्भीकता और आत्म स्वाभिमानी होना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अखण्डता को एकता के सूत्र में पिरोने का यही सबसे सही प्रयास है। हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए,और विविधता को समाप्त किया जाए।”

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