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‘इत्र’ की बदबूःराष्ट्रीय शिष्टाचार

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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इत्र से कितनी बदबू फैल सकती है,यह दुनिया को पहली बार पता चला। कन्नौज के इत्रवाले जैन परिवारों पर पड़े छापों ने इत्र के साथ उत्तरप्रदेश की राजनीति की बदबू को भी उजागर कर दिया है। सच्चाई तो यह है कि,इन छापों ने भारत की सारी राजनीति में फैली बदबू को सबके सामने फैला दिया है। जब पीयूष जैन के यहां छापा पड़ा तो सारे खबरतंत्र से यह प्रचारित किया गया कि यह छापा समाजवादी पार्टी के कुबेर के संस्थानों पर पड़ा है। दूसरे शब्दों में यह पैसा अखिलेश यादव का है। कानपुर की एक सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने विरोधियों पर हमला करते हुए कहा कि यह भ्रष्टाचार का इत्र है। इसकी बदबू सर्वत्र फैल गई है। यह बदबू २०१७ के पहले फैली थी। तब तक अखिलेश उप्र के मुख्यमंत्री थे,लेकिन अखिलेश ने कहा कि यह छापा गलतफहमी में मार दिया गया है। पीयूष जैन का समाजवादी पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है। सरकार ने पुष्पराज जैन की जगह गलती से पीयूष जैन के यहां छापा मार दिया। अब सरकार ने पुष्पराज जैन के यहां भी छापा मार दिया है। यदि अखिलेश पहले छापे का मजाक नहीं उड़ाते तो शायद उनके जैन पर दूसरा छापा नहीं पड़ता,लेकिन अब भाजपा ने हिसाब बराबर कर दिया है। इन छापों से हमारे सभी नेताओं की छवि खराब होती है। जनता को लगता है कि ये सभी भ्रष्ट हैं। इनमें से कोई दूध का धुला नहीं है। चुनावों के मौसम में की जा रही इस छापामारी से सत्तारुढ़ दल की छवि भी चौपट होती है। अपने विरोधियों को बदनाम और तंग करने के लिए ही ऐसे छापे इस समय मारे जाते हैं। पिछले कई साल से सरकार को लकवा क्यों हुआ पड़ा था ? इसके अलावा ये छापे उसी राज्य में क्यों पड़ रहे हैं,जिसमें चुनाव सिर पर हैं ? क्या भाजपा को हार का डर सता रहा है ? यदि देश में अर्थ-शुद्धि करनी है तो ऐसे छापे सबसे पहले सरकारों को अपनी ही पार्टी-नेताओं पर मारने चाहिए,क्योंकि उनके पास शुद्ध हरामखोरी का ही पैसा जमा होता है। उद्योगपति और व्यापारी तो अपनी बुद्धि और मेहनत से पैसा कमाते हैं,ये बात अलग है कि उनमें से कई कर-चोरी करते हैं। इन छापों ने यह भी सिद्ध किया है कि,मोदी सरकार की नोटबंदी की नाक कट गई है। नोटबंदी के बावजूद यदि करोड़ों-अरबों रु. इत्रवालों के यहां से नकद पकड़े जा सकते हैं तो बड़े-बड़े उद्योगपतियों और व्यापारियों ने अपने यहां तो खरबों रु. नकद छिपा रखे होंगे। नेताओं और पैसेवालों की सांठ-गांठ ने ही भ्रष्टाचार को राष्ट्रीय शिष्टाचार बना दिया है।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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