लोकार्पण….
इंदौर (मप्र)।
डॉ. चौधरी की सारी कविताओं में आशावाद है। जिस उम्र ८० में व्यक्ति अमावस की ओर अग्रसर होता है, उस अवस्था में डॉ. चौधरी ने पूर्णिमा की बात कही है। लेखक ने अपनी रचनाओं में नई पीढ़ी को सीख और पुरानी पीढ़ी को नई ऊर्जा दी है।
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. उमराव सिंह चौधरी के कविता संकलन
मेरी मावस बन गई पूर्णिमा का लोकार्पण करते हुए यह बात मुख्य अतिथि पूर्व राज्यपाल व्ही.एस. कोकजे ने गुरूवार की शाम को कही। प्रीतमलाल दुआ सभागृह में इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार सूर्यकांत नागर ने की। मंच पर विशेष रूप से शिक्षाविद डॉ. शोभा वैद्य भी उपस्थित रही।
अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार सूर्यकांत नागर ने कहा कि, डॉ. चौधरी की कविताओं में लोक चेतना और लोक कल्याण के दर्शन होते हैं। ये मनुष्यता के बचाव के लिए लिखी गई है। पाठकीय दृष्टि रखते हुए मनोज वैद्य ने कहा कि, कविताओं में भाषा की सुघड़ता और परंपराओं की खुशबू है।
लेखक डॉ. चौधरी ने कहा कि, मेरी इन कविताओं में पर्यावरण की गुणवत्ता में आई गिरावट और संस्कृति पर हो रहे आक्रमण व विस्थापन संबधी चिंता है।
समीक्षा करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार हरेराम वाजपेयी ने कहा कि, लेखक ने पश्चिम की फूहड़ता और संस्कृति पर हो रहे हमले पर कड़ा प्रहार किया है, वहीं समस्याओं को बड़ी बारीकी के साथ रेखांकित किया है। इसी क्रम में साहित्यकार डॉ. कला जोशी ने कहा कि, कविताओं में धरती की तपन, जल का शीतल, जीवन का संघर्ष, पीड़ा के साथ प्रकृति का सौंदर्य है। कुछ कविताएं ऐसी है, जिसे गुना जा सकता है। संचालन लिली डाबर ने किया। आभार डॉ. वैद्य ने माना।