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इमरान पर भरोसा…? भारत अपनी सुरक्षा पर पूरी सावधानी रखे

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कमाल कर दिया। उन्होंने अमेरिका में अपने आतंकवादियों के बारे में ऐसी बात कह दी, जो आज तक किसी भी पाकिस्तानी नेता ने कहने की हिम्मत नहीं की। उन्होंने अमेरिका के एक ‘शांति संस्थान’ में भाषण देते हुए कह दिया कि पाकिस्तान में ३० हजार से ४० हजार तक सशस्त्र आतंकवादी सक्रिय हैं। उनकी सक्रियता को पिछली पाकिस्तानी सरकारें छिपाती रही हैं,और उनके बारे में झूठ बोलती रही हैं। ये आतंकवादी अफगानिस्तान और कश्मीर में खूंरेजी करते रहे हैं। ऐसे ४० गिरोह पाकिस्तान में दनदना रहे हैं। उनके खिलाफ २०१४ से कार्रवाई शुरु हुई, जब उन्होंने पेशावर के फौजी स्कूल के डेढ़ सौ बच्चों को मार डाला था। इमरान ने दावा किया कि उनकी सरकार ने सत्ता में आते ही इन दहशतगर्द गिरोहों के खिलाफ सख्त कार्रवाई शुरु कर दी है। हाफिज सईद इस समय गिरफ्तार है,और उसकी जमात-उद-दावा के ३०० मदरसे,विद्यालय,अस्पताल ,प्रकाशन संस्थान और एंबुलेंसों को सरकार ने जब्त कर लिया है। इमरान के इस तेवर से पाकिस्तान के कई राजनीतिक दल,टी.वी. चैनलों के एंकर और देशभक्त पत्रकार लोग बेहद खफा हैं,लेकिन वे यह क्यों नहीं समझते कि इमरान की इस साफगोई का जबर्दस्त फायदा पाकिस्तान को मिल सकता है। अंतरराष्ट्रीय वितीय टास्क फोर्स अक्तूबर में पाकिस्तान को काली सूची में डालने वाली है। क्या वह रहम नहीं खाएगी ? इसके अलावा अमेरिकी नीति-निर्माताओं पर इमरान की इस स्वीकारोक्ति का क्या कोई असर नहीं पड़ेगा ? इमरान ने तालिबान और काबुल सरकार के बीच भी समझौता करवाने का संकल्प प्रकट किया है। पाकिस्तान के विरोधी नेता इस नए तेवर को इमरान का ढोंग बता रहे हैं,उनका शीर्षासन कह रहे हैं। वे उन्हें फौज का चमचा बताते रहे हैं लेकिन सोचता हूँ कि इस नये इमरान का जन्म पाकिस्तान की मजबूरी में से हुआ है। यह मजबूरी तात्कालिक हो सकती है,लेकिन यह है सच! भारत के लिए इस सच को स्वीकारना काफी मुश्किल है। दूध का जला छाछ को भी फूँक-फूँक कर पीता है,लेकिन भारत अपनी सुरक्षा के बारे में पूरी सावधानी रखे,पर इमरान पर भरोसा भी क्यों न करे ?

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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