संजय गुप्ता ‘देवेश’
उदयपुर(राजस्थान)
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सागर को कभी झलकता देखा नहीं है
डूबी है किश्तियाँ उसमें खुद के भार से,
इश्क़ में अपने जज्बातों को रोके रखना…
जीता नहीं है कोई,खुद अपने से हार के।
गम और खुशी का तो ये शाश्वत रिश्ता है
प्यार इन दो बुनियाद पर ही तो टिकता है,
आँखें मिलाकर नशा हुआ हो कभी तो…
अश्कों से बना ले,फिर पैमाने प्यार के।
कठिनाईयों में भी बनाये रखना हौंसले
माना आंधियों से ये पर्वत भी नहीं हिले,
पर चट्टानें भी हारी हैं इस वक्त के आगे…
कट गयीं वो लगातार बहती हुई धार से।
सही सुना है जो गरजते हैं बरसते नहीं
पर यह चातक चोंच बंद करती नहीं है,
पतझड़ की सच्चाई है,काँटों की उम्मीद…
लौट के आते ही हैं,दिन फिर बहार के।
उत्तंग पर्वत के शिखर पर ठहरी चट्टान
नदी के वेग से खो देती है रूप अपना,
रेत उड़ी सेहरा में बर्बादियों के साथ,पर…
थामा सूखा दरख़्त,आँधियों के वार से॥
परिचय-संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।