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इस मंत्रिमंडल के अर्थ

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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नरेन्द्र मोदी मंत्रिमंडल का यह शपथ-समारोह अपने-आपमें एतिहासिक है,क्योंकि यह ऐसा पहला गैर-कांग्रेसी मंत्रिमंडल है, जो अपने पहले पांच साल पूरे करके दूसरे पांच साल पूरे करने की शपथ ले रहा है। पिछले शपथ-समारोह से यह इस अर्थ में भी थोड़ा भिन्न है कि इसमें ‘दक्षेस'(सार्क) की बजाय ‘बिम्सटेक’ सदस्य-राष्ट्रों के प्रतिनिधि आए हैं। इसके कारण हमारे तीन पड़ौसी देशों की उपेक्षा हो गई। मालदीव,पाकिस्तान और अफगानिस्तान।मेरी राय यह थी कि दक्षेस और बिम्सटेक के अलावा अन्य पड़ौसी राष्ट्रों को भी बुलाया जाता तो बेहतर होता। ऐसे पड़ौसी राष्ट्र,जो भारत को महाशक्ति और महासम्पन्न बनाने में विशेष सहायक हो सकते हैं। शपथ-समारोह इतने कम समय में आयोजित हुआ है कि शायद इतने राष्ट्रों को एकसाथ बुलाना संभव नहीं था। खैर,इस नए मंत्रिमंडल के शपथ-समारोह में मुझे यह भी अच्छा लगा कि राजनाथसिंह,अमित शाह और नितिन गडकरी की वरिष्ठता को यथोचित्त रखा गया। इन लोगों के बीच सुषमा स्वराज और अरुण जेटली को बैठा न देखकर दु:ख हो रहा है। सुषमा और अरुण, दोनों अपने स्वास्थ्य के कारण बाहर रहने को मजबूर हुए हैं। यह इस नए मंत्रिमंडल के लिए घाटे का सौदा है। स्व. पर्रिकर और अनंतकुमार की भी याद ताजा हुई। अमित शाह को मंत्री बनाकर मोदी ने अनौपचारिक उप-प्रधानमंत्री का पद कायम कर दिया है। जैसे अटलजी और आडवाणीजी की जुगल-जोड़ी ने काम किया, उससे भी बेहतर काम यह नरेन्द्र भाई और अमित भाई की भाई-भाई जोड़ी काम करेगी। डाॅ.जयशंकर को मंत्री बनाकर मोदी ने अपनी विदेश नीति को नई धार देने की कोशिश की है। जयशंकर चीन और अमेरिका में हमारे राजदूत रह चुके हैं और विदेश सचिव भी रहे हैं। उनके पिता स्व. के. सुब्रहमण्यम भारत के माने हुए रणनीति-विशेषज्ञ रहे हैं। कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी इस बार मंत्रिमंडल में जोड़ा गया है,इससे केन्द्र सरकार को उनके अनुभव का लाभ तो मिलेगा ही,उन-उन प्रांतों में भी भाजपा का जनाधार बढ़ेगा। इस नए मंत्रिमंडल में कई पुराने मंत्रियों को बरकरार रखा गया है। जाहिर है कि ज्यादातर मंत्रियों ने अपना काम ठीक-ठाक किया है। जैसे कई कांग्रेसी सरकार के मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे,वैसे आरोप मोदी मंत्रिमंडल के सदस्यों पर नहीं लगे। आशा है कि मोदी सरकार की इस दूसरी अवधि में भी इस मंत्रिमंडल के सदस्यों का आचरण विवादों के परे रहेगा। इस मंत्रिमंडल में कई नए सदस्यों को भी जोड़ा गया है। इनमें से कुछ भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रहे सांसद भी मंत्री बने हैं। यह भी भाजपा के जनाधार को बढ़ाने में मदद करेगा। इस मंत्रिमंडल में महिलाओं और अहिंदी प्रांतों के सांसदों को काफी स्थान मिला है। यह भाजपा के लिए ही नहीं,संपूर्ण भारत के लिए शुभ-संकेत है। देश की जनता को सरकार,नौकरशाही,पुलिस और फौज से ज्यादा जोड़नेवाली ताकत कोई होती है तो वह एक अखिल भारतीय राजनीतिक पार्टी होती है। यह काम जो कांग्रेस करती रही,अब वही भाजपा करती दिखाई पड़ रही है। एक मजबूत पार्टी और मजबूत सरकार भारत को अगले पांच साल में विश्व-स्तरीय शक्ति बना सकती है।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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