कुल पृष्ठ दर्शन : 410

You are currently viewing ईश्वर संग हमारी आस्था,यही सत्यता

ईश्वर संग हमारी आस्था,यही सत्यता

सतीश ‘बब्बा’
चित्रकूट(उत्तरप्रदेश)
*************************************************

ईश्वर और मेरी आस्था स्पर्धा विशेष…..

‘ई’ और ‘स्वर’ से बना यह ईश्वर शब्द, भारतीय जनमानस की आस्था का केंद्र है। बहुत पहले से ईश्वर और हमारी आस्था पर बहस,शोध होते रहे हैं।
ईश्वर कहाँ है,ईश्वर क्या है,ईश्वर कैसा है ?,आज तक मात्र कल्पनाओं का पुलिंदा है,किसी ने ईश्वर को देखा नहीं है! ईश्वर से मिलना,ईश्वर का प्राकट्य मात्र काल्पनिक कहानियाँ हैं। ईश्वर है यह भी सत्य है। ईश्वर को झुठलाया नहीं जा सकता।
आपका जन्म होता है,आप बोलते हैं,आपकी मृत्यु होगी,यह क्या है! यही तो ईश्वर है। जो हमारे और आपके रूप में है,यही तो ईश्वर है। तुलसीदास ने भी रामायण में लिखा है कि,’ईश्वर अंश जीव अविनाशी…!’
ईश्वर कहाँ है,कैसा है,यह अनुमान सहज है ‘एको अहं ब्रह्म द्वतीयो नास्ति!’
ईश्वर ही तो है,जो बोलता है,सुनता है,चलता है और हँसता है। हवा है यह सत्य है,पूर्ण आभास है,यह सत्य है। हवा के बिना कोई जीवित नहीं रह सकता, लेकिन हवा कैसी है, किसी ने नहीं देखा। यह सत्य है कि,ईश्वर है और ईश्वर के साथ हमारी आस्था है,यही सत्यता है।

Leave a Reply