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उर स्वर तरंग कैसे लाऊं…

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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बिखरुँ तो बिसर जाऊं
या बिसर के बिखर जाऊं,
इंद्रियां समेटूं मैं अपनी
या इनमें ही सिमट जाऊं।

खुद बिसर शिखर पाऊं
या बिखर के निखर पाऊं,
संकुचित होती उर ज्योत
क्या इसी में लिपट जाऊं।

निखर शिखर कैसे पाऊं
बिसर बिखर कैसे जाऊं,
इन्द्रियां शीतल करूं ताप
या अग्नि विराट भड़का।

सजल स्वर कैसे पाऊं
उर त्वरित तरंग कैसे पाऊं,
मंद गति भड़के है अग्नि
क्या इसमें ही स्वाह पाऊं।

उर स्वर तरंग कैसे लाऊं,
इन्द्रियां संतुलन कैसे पाऊं।
संसारी वासना से प्रथम,
क्या इनसे ही निपट आऊं…?

परिचय- संदीप धीमान का जन्म स्थान-हरिद्वार एवं जन्म तारीख १ मार्च १९७६ है। इनका साहित्यिक नाम ‘धीमान संदीप’ है। वर्तमान में जिला-चमोली (उत्तराखंड)स्थित जोशीमठ में बसे हुए हैं,जबकि स्थाई निवास हरिद्वार में है। भाषा ज्ञान हिन्दी एवं अंग्रेजी का है। उत्तराखंड निवासी श्री धीमान ने इंटरमीडिएट एवं डिप्लोमा इन फार्मेसी की शिक्षा प्राप्त की है। इनका कार्यक्षेत्र-स्वास्थ्य विभाग (उत्तराखंड)है। आप सामाजिक गतिविधि में मानव सेवा में सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता एवं ग़ज़ल है। आपकी रचनाएँ सांझा संग्रह सहित समाचार-पत्र में भी प्रकाशित हुई हैं। लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा व भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार करना है। देश और हिन्दी भाषा के लिए विचार-‘सनातन संस्कृति और हिन्दी भाषा अतुलनीय है,जिसके माध्यम से हम अपने भाव अच्छे से प्रकट कर सकते हैं,क्योंकि हिंदी भाषा में उच्चारण का महत्व हृदय स्पर्शी है।

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