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अपनी धरती सजा लें

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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पर्यावरण दिवस विशेष……

चलो आज हम अपनी धरती सजा लें।
इसे फिर से पहले जैसी बना लें॥

रहे जिन्दगी भर ये ‘पर्यावरण’ दिन,
सभी इन विचारों को दिल में जगा लें।
चलो आज हम…

हमें कितना कुछ ये देती हमेशा,
मगर हम करें इसका दोहन हमेशा।
कभी सोचते न लिया तो दिया क्या,
रहेगी धरा तो बचेगा ये जीवन।
नहीं तो मिटेगा धरा से ये जीवन।
चलो आज हम……

हमारी ये धरती हमारी ही साँसें,
मगर बिन हवा बचें कैसे साँसें।
करो कुछ नहीं तो बचेगा न जल भी,
बिना जल,हवा के न जीवन कहीं भी।
कहा करते हरदम है जीवन तो जल से।
चलो आज हम…

मिला जिन्दगी को सभी कुछ धरा से,
दिया जिन्दगी ने भला क्या धरा को।
अनाजों की मण्डी,सुखों के ये सागर,
भरेंगे ये कैसे जो सूखेगी गागर।
मिटे न ये सृष्टि,जो निर्भर धरा पे।
चलो आज हम…

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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