श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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प्यारे बादल करा देना मुझको,नील गगन की सैर,
सच कहती बादल,अब धरा में नहीं टिक रहे पैर।
हे बादल मुझे ले चलो,ले चलो ना चाँद के पास,
मन ही मन कर रहा है,प्यारा चाँद हमारी आस।
नील गगन में जा के देखूंगी,कहाँ रहती है वर्षा ऋतु,
जिसकी रिमझिम बारिश से,टूट जाता धरा का सेतु।
कहो ना बादल कहाँ पर रहता है,प्यारी बरखा रानी,
जिसे देख के द्वार खड़ी गोरी,अंजुलि में भरती पानी।
हे मित्र बादल मुझे,नील गगन में छुपे तारे दिखा दो,
तारों के बीच बैठे हैं शुक्र देव,उनका दर्शन करा दो।
कहो ना बादल तुम कैसे अपना रंग-रूप बदलते हो,
उमड़-घुमड़ के गरज-गरज के कैसे जल बरसाते हो।
बादल मैं पगली प्रेमिका बनी हूँ,बताना प्यारे चाँद को,
बिन देखे मुझे चैन नहीं,छुप के देखती हूँ आधी रात को।
जब शून्य गगन में चपला चमकती बहती मन्द पुरवाई,
सच कहती हूँ बादल,तब मुझे वो चाँद की याद आई।
जा जा बादल जा,जाकर कहना तुम चमकते चाँद से,
अब उनसे लागी नाही छूटे प्रीत,मिलो अपनी जान से।
हे बादल ले चलो ना मुझे तुम,प्यार के उस पार में,
जहाँ मेरा चाँद छुप कर बैठा है,तारों के बाजार में।
कह रही ‘देवन्ती’ मैं गई थी,एक रोज बादल के साथ,
सुन्दर रूप चमकता चाँद से,मिला के आई मैं हाथ॥
परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।