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औरत को कमजोर समझने की न कभी भूल करना

राधा गोयल
नई दिल्ली
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अपनी-अपनी जान बचाकर हमें छोड़कर भाग गए,
खुद को तीसमार खां कहने वाले, डरकर भाग गए
अपनी पत्नी-माँ-बहनों को हैवानों को सौंप गए।,
अपने ही…अपनों के कलेजे में, क्यों छुरियाँ घोंप गए ? 

तालिबानियों ने मिलकर कैसा नृशंस व्यवहार किया,
तन की भूख मिटाने को, माँ-बहनों को मजबूर किया
जिसने कोई विरोध किया, बेमौत मौत उसको दी थी,
मुर्दा हुए जिस्म तक से भी, तन की भूख शान्त की थी।

पेट में उसके आग लगी जब, तब औरत को मुक्त किया,
मुर्ग मुसल्लम पका के लाने का उसको आदेश दिया
पहले चाय बनाकर लाओ, कड़क के उससे कहा गया,
उसी समय उस औरत ने भी निर्णय बेहद कड़ा लिया।

औरत इनकी कमजोरी है, इतना उसने जान लिया,
उस कमजोरी का कैसे फायदा उठाना, सोच लिया
हँसते-हँसते चाय पिलाई, खाने से सन्तुष्ट किया,
फिर उनकी बन्दूकों से, उनके सीनों को चाक किया।

औरत को कमजोर समझने वालों को यह पता नहीं,
जन्म पुरुष को औरत देती, उसे भूल गए नर-भक्षी
कामुकता की वेदी पर कितनों की अस्मत को लीला,
अब औरत ने भी दिखलाई, अपनी हिम्मत की लीला।

औरत के चुप रह जाने को मजबूरी समझे हो तुम ?
दुराचारियों! औरत को खुद से कमतर समझे हो तुम ?
औरत यदि अपनी पर आए, एक कयामत ला सकती,
तुम जैसे वहशी की क्या औकात है, यह समझा सकती।

औरत को कमजोर समझने की न कभी भूल करना,
वक्त पड़े पर रणचण्डी बन  जाती, इसे याद रखना।
जब-जब विपद पड़ी देवों पर, तब देवी को याद किया,
तुझ जैसे दैत्यों का तब, काली बनकर संहार किया॥

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