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कवि हूँ

डोमन निषाद
बेमेतरा(छत्तीसगढ़)

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कभी हँसता हूंँ,
कभी रूलाता हूँ
जो गम आता है,
सब भुला जाता हूँ।
वही गुनगुनाता हूँ,
फिर भी क्या करूँ
दर्द में हँसी है,
यही बात बताता हूँ।
भाई साहब! मैं कवि हूँ…॥

अपने विचारों को,
व्यक्त करता हूँ
दु:ख हो या सुख हो,
विधा में प्रस्तुत करता हूँ।
बस भावनाओं को,
समझाना चाहता हूँ।
भाई साहब! मैं कवि हूँ…॥

मेरा काम नहीं,
किसी को लड़ाने
न किसी को सताने को,
शब्दों से थोड़ा बोल लेता हूँ
मन हल्का करने को।
भाई साहब! मैं कवि हूँ…॥

निर्दोष हूँ,
मैं दुनिया से जुड़ा हूँ
सबका प्यार पाने को,
जब लिखना शुरू करूँ।
किसके ऊपर लिखूँ,
समझाने को।
भाई साहब! मैं कवि हूँ…॥

कसम है,
खुदा जो यहाँ भेजा है
सत्य की परिभाषा सुनाने को।
तड़पता हूँ,
गलतियां दिखाने को।
भाई साहब! मैं कवि हूँ…॥

देखो न,
विचित्र हैं इंसान
कई तरह है पहचान।
अलग है भाषा,
अलग हैं वेशभूषा
मगर एक है जान।
बताने में लगा हूँ,
सब हैं ईश्वर का महेमान,
भाई साहब! मैं कवि हूँ….॥

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