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कार्तिक पूर्णिमा-प्रकाश पर्व

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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कार्तिक माह पूर्णिमा पर करें गंगा में स्नान,
राधे-राधे कृष्ण जपें, करें विष्णु जी का ध्यान
दीप प्रज्ज्वलित कर, माँ गंगे को कर दें दान,
कागज की ही नाव पर, दीप में ज्योति जान।

नदी-तालाब की लहर तरंग में झूमता दीया संग नाव,
नदी किनारे भीड़ का भक्ति सागर सैलाब
दान दरिद्र नारायण को, मन में हो ऐसा भाव,
सत्यनारायण की पूजा से मिटेगा दीन-हीन दुर्भाव।

गुरुनानक देव की जयंती है, प्रकाश पर्व है शान,
सुबह-सुबह गुरुवाणी सुनें, पाएँ शबद कीर्तन से ज्ञान
प्रातः प्रभात फेरी करें, करके वाहे गुरु का ध्यान,
मस्तिष्क निर्मल हो जाएगा, मिटेगा सब अज्ञान।

भीड़ जुटाकर जुलूस करें, फिर गुरु वाणी का बखान,
राम-कृष्ण, विष्णु जपें, माँ तुलसी को कर प्रणाम
हरे राम, हरे राम, हरे कृष्ण भजो लेकर हरि का नाम,
‘सतनाम वाहे गुरु’ सब कहें, करें गुरु नानक जी का गुणगान।

सूजी हलवा कड़ा प्रसाद चढ़ाएं, बाँटें गरीबों को पूड़ी-खीर,
पंगत में सब साथ हैं बैठे, भिक्षुक-दानवीर, संत-फकीर
लंगर में सब सत्य दिखा, मानवता की तस्वीर,
‘जो बोले सो निहाल’, कहें ‘सत् श्री अकाल’, सिख धर्म है धीर।

वाहे गुरु का खालसा, वाहे गुरु की फतह,
उनके ही आदर्शों से बची है मातृभूमि का सतह
बच्चे-बच्चे उठ खड़े हुए, बने योद्धा पृथ्वी तह,
त्याग, तपस्या, सर्वस्व न्यौछावर का दिया गुरु ने सह।

नारी को सम्मान दिया, माँ-बेटी को इज्जत,
लद्दाख़-तिब्बत ने भी भी नानकदेव को लामा वर्षों पूर्व की शिद्दत
एकता-अनेकता, भाई चारा समानता गुरु नानक देव का मत,
सत्य, अहिंसा, मानवता से मिटाए अज्ञानता की बड़ी मुसीबत।

कार्तिक पूर्णिमा पर हम बोलें श्री विष्णु के बोल,
नानक देव को वाहे गुरू कहें, तुलसी माँ हैं अनमोल।
भारत का इतिहास यही है, विश्व का यही भूगोल,
सबका मालिक एक है, तभी है पृथ्वी गोल॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको
महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”