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कुछ टूट रहा है परिवारों में

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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बंट रहे हैं आजकल रिश्ते
स्वार्थ की दीवारों में,
ऐसा लगता है जैसे कि-शायद
कुछ टूट रहा है परिवारों में।

नहीं रहा वो अपनापन
रिश्तों में रहती अनबन,
झांक रही हैं संवेदनहीनता
घर में आई दरारों में,
लगता है ऐसा जैसे कि-शायद
कुछ टूट रहा है परिवारों में।

कड़ी मेहनत से घर बनाया
प्यार से फिर इसे सजाया,
ईंट-ईंट बंट गई
बच्चों के अधिकारों में,
लगता है ऐसा जैसे कि-शायद
कुछ टूट रहा है परिवारों में।

नाम के रह गए रिश्ते
नासूर की तरह वो रिसते,
स्वार्थपरता आ गई है
आजकल के रिश्तेदारों में,
लगता है ऐसा जैसे कि-शायद
कुछ टूट रहा परिवारों में।

सम्बन्धों की क़द्र न करते
भाई-भाई आपस में लड़ते,
मलिनता आ गई है
मन में और विचारों में,
लगता है ऐसा जैसे कि-शायद
कुछ टूट रहा है परिवारों में।

कटते जा रहे हैं परिवार
नहीं बचा आपस का प्यार,
कभी-कभी मिल लेते हैं
होली-दिवाली त्यौहारों में,
लगता है ऐसा जैसे कि-शायद
कुछ टूट रहा है परिवार में।

दिशाहीन ये युवा हो रहे
अपने लक्ष्य को है खो रहे,
नव चेतना जगानी है
नवयुवकों के संस्कारों में,
लगता है ऐसा जैसे कि-शायद
कुछ टूट रहा परिवारों में।

चटके हैं रिश्तों के बर्तन,
स्वार्थ करे घर-घर नर्तन,
खिज़ा आ गई क्यों
मौसम-ए-बहारों में।
लगता है ऐसा जैसे कि-शायद,
कुछ टूट रहा है परिवारों में॥

परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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