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कौन जो …..??

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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कौन जो आवाज देता,
बादलों की ओट से
भय से मन थर-थर हुआ है,
बिजलियों की चोट से।

बूंदों की लड़ियाँ, ये जैसे,
विष में बुझे बाण हैं
छिल रहा यह मन तो मेरा,
जो कब से बना पाषाण है।

क्षितिज जैसे, खो स्वरुप को,
आज अदर्श-सा हो गया
जैसे सूरज, अग्नि अपनी,
बस बूंदों ही में, डुबो गया।

नीली आभा आज गगन की,
ले अवकाश के चली गई
बादलों की गरज-बरस से,
लगता है वह भी छली गई।

रुप वह भी प्रकृति का ही,
स्वरुप यह भी उसका है
पर बदलना, उसका-इसमें,
मूल कर्म यह किसका है ?

वो ही ना, दिखता किसी को,
जो कारक है, सब कर्म का
‘अजस्र’ आँखें थक गई है,
न अंश पाया, उस धरम का।

कण-कण जो आँखों के आगे,
स्वरुप सब आमूल है
तर्क-वितर्क और ज्ञान चक्षु से,
पर दिखता नहीं, निर्मूल है।

कण-कण और जन-जन में भी हो,
सृष्टि-सह-अस्तित्व जैसे
कैसे कोई, फिर हो अछूता,
घोर अंधकार में, घिरे कैसे ?

सगुण-निगुण की भूल-भुलइया,
निराकार का भरम बना।
दिव्य-चक्षु वो कहां से लाऊं,
मूरत में देखूं अक्ष बना।

पाने उस ही को, उस स्वरूप में,
तीरथ-तीरथ माथ धरूँ।
‘अजस्र’ पर किरपा बनी रहे उसकी,
आँखें बंद और दरश करूँ॥

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार ‘अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि १७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान बूंदी (राजस्थान) है। आप बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान आदि मिले हैं।

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