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…क्योंकि जल होगा तो कल होगा

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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जल ही कल…..

हम बहुत से वरिष्ठजन नियमित रूप से शाम के समय मैदान में बैठ आपस में किसी भी विषय पर बातचीत करते आ रहे हैं। उसी समय लिए निर्णय अनुसार हमारे स्तर पर जल संरक्षण पर कैसे आगे बढ़ना उचित रहेगा, पर भी गहन विचार-विमर्श पश्चात सबने स्वीकार किया कि जल की फिजूलखर्ची को रोकना यक्ष प्रश्न है। इसलिए यह आवश्यक है कि हम सभी को निगरानी तो रखनी ही पड़ेगी, ताकि पीने का पानी अन्य कार्य में उपयोग न हो। इसका मतलब यह है कि हमें पानी बचाने के लिए पहल करने की जरूरत है, चाहे कमी हो या न हो। यानि स्वयं ही जल के महत्व को समझ अपने स्तर से ही इस मुहिम की शुरुआत कर अमोल पानी को बचाने का प्रयास अति आवश्यक है। अतः सब मिलकर इस पर जागरूकता का आगाज अपने-अपने घर से शुरू कर ज्यादा से ज्यादा लोगों को जल सरंक्षण के उपाय अपनाने का आग्रह करेंगे-
▪सबसे पहले नल की टोंटियाँ जिससे पानी रिसता हो भले ही घर की हो या फिर सार्वजनिक पार्क आदि में उसे तुरन्त ठीक करवाना है।
▪मंजन करते समय एवं दाढ़ी बनाते समय नल तभी खोलें, जब सचमुच पानी की ज़रूरत हो।
▪गाड़ी को पानी से धोने की बजाय गीले कपड़े से साफ कर लेने वाली प्रक्रिया अपना लेने का आग्रह करेंगे।
▪सभी से निवेदन कर रसोई घर में लगे पानी शुद्धिकरण यन्त्र एवं वातानुकूलक से निकलने वाले पानी को घर वाले पौधों को पानी देने के काम में लेने या फिर यह पानी घर में पोंछा लगाने में काम में अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेंगे, ताकि पानी बचाया जा सके।
▪दाल-चावल को धोने के बाद पानी को यदि हम पौधों में डालते हैं तो यह पौधों में पोषण देने का काम करते हैं, जिससे बगिया हरी-भरी रहती है ।
▪ऐसी ही पाकपात्र और कढ़ाई गंदे ही नल के नीचे रख दें, जिससे सब्ज़ी वगैरह धोते समय गिरने वाले पानी से वो भर जाएंगे और साफ करना आसान होगा।
▪गर्मियों के दिनों में स्वविवेक से कम पानी से नहाने की आदत पर ध्यान केंद्रित करें। सभी से आग्रह करेंगे कि इस काम के लिए भारत रत्न सचिन तेंदुलकर से प्रेरणा ले सकते हैं, जो सिर्फ १ बाल्टी पानी से ही नहाते हैं।
▪नित्य कपड़े धोने की बजाय कपडे इकट्ठे होने पर ही धोएं।
▪सम्भव हो तो २ बटन वाली संप्रवाही टंकी (फ्लश) उपयोग में लें, जो थोड़ा और ज्यादा पानी का बहाव देता है।
▪बाग़-बगीचों में दिन की बजाय रात में पानी से सिंचाई करने से पानी का वाष्पीकरण रुकेगा। साथ ही पौधों में नली के बजाय कनस्तर से पानी देने से हम पानी बचा भी पाएंगे।
▪वर्षाजल संचयन के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाना भी आवश्यक है। इसके लिए मकानों की छत पर वर्षाजल एकत्र करने हेतु टंकी बनाकर उन्हें मजबूत जाली या फिल्टर कपड़े से ढककर जल संरक्षण किया जा सकता है।
हम सभी का इरादा-पानी व्यर्थ नहीं बहे, साथ ही उसका आवश्यकतानुसार बुद्धिमानी से उपयोग हो, क्योंकि पानी की बर्बादी पूरे समाज को प्रभावित करती है। इसलिए जल संरक्षण के इन मुख्य बिन्दुओं को हम अपने स्तर पर लागू कर सकते हैं, क्योंकि जल संरक्षण की जिम्मेदारी केवल और केवल मनुष्य के जिम्मे है। इसलिए हम सभी को प्रण लेकर पानी बर्बादी को रोककर अपने जीवन व प्रकृति को हरा-भरा तथा खुशहाल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में चूकना नहीं है। संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी एक चौपाई लिख पूरी मानव जाति के सामने पर्यावरण का एक सही खाका खींच दिया था-
‘छिति जल पावक गगन समीरा।
पंच रचित अति अधम सरीरा॥’

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