ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
**************************************
सावन शुक्ल पक्ष पंचम को,
हम गर्वित पर्व मनाते हैं
धर्म सनातन प्रकृति पोषित,
साँपों को दूध पिलाते हैं।
दया भाव से भरा अतुलनी,
नाग पंचमी पर्व पुराना
पौराणिक जाँचा-परखा यह,
ध्येय रहा जीव-जंतु बचाना।
सदा रहे हमारे पूर्वज,
ज्ञान ध्यान में, नहीं विद्वेषी
पर्व बनाए हैं उन्होंने,
प्रकृति जीव-जंतु हितैषी।
फैलाया भ्रम मिथ्या जिसने
भारत बारे में, धिक्कारो
देश सपेरों इंद्रजाल का,
बात कभी इसे न स्वीकारो।
जलमग्न सकल भूमि वर्षा में,
भू भीतर तक आप्लावित हो।
बांबी बिल का कीट जीव जगत,
तब तल आते भय भावित हो।
मानव इस विषधर से डरकर,
मार समूल नाश उच्चाटे
प्रकृति संतुलन डगमगाए,
कृषक मित्र तुला के काँटे।
उपद्रवी व अन्न का घातक,
मूषक कई रोग का वाहक
जिन पर सर्प रखे नियंत्रण,
इस कारण उसे कर न आहत।
एक कथा यह भी द्वापर की,
परीक्षित, यज्ञ तक्षक उद्धित।
जनमेजय से सर्प बचा कर,
हुए धरा आस्तिक मुनि वंदित॥
परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।