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ग़रीबी के मायने बहुत हैं साहब

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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तुम क्या जानो ऐ हजूर,
ग़रीबी क्या होती है ?
हमने देखा है करीब से,
बे-ग़रज-ए-फकीर-सी होती है।

न दिल में चैन होता है,
न चेहरे पे हँसी होती है
दरख्तों के साए में सिर्फ,
बेज़ुबान-सी होती है।

बेघर होते हैं उनके घर,
नज़र सिर्फ रोटी पर होती है
खुशहाली की दीवारों पर,
एक लकीर-सी होती है।

दुःख में निकले सवेरा,
रातें अन्धेरी होती है
खाने का पता, न सोने की जगह,
जिन्दगी अजीब-सी होती है।

मन ही मन दिल रोता है,
पलकें भी भीगीं होती है।
ग़रीबी के मायने बहुत हैं साहब,
बस! बदनसीब-सी होती है॥

परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।

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