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गुलाब

सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली
देहरादून( उत्तराखंड)
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मैं गुलाब हूँ,गुलाब हूँ,गुलाब हूँ,
तेरी आँखों में पलता मैं ख्वाब हूँ।

घर-आँगन की शोभा तो होता हूँ में,
सब फूलों का राजा भी होता हूँ मैं।
खिलता मुस्काता सदा काँटों में हूँ,
तुम्हें जीवन की सीख दे जाता हूँ।
तुम न तोड़ो मुझे डाल से यूँ,
मैं गुलाब हूँ…

प्रेम का प्रतीक हूँ जहां में मैं,
कई रंगों में खिलता मुस्काता मैं।
जिसकी जो भी पसन्द हो वो देता उसे,
गुलाबी रंगत में ही सबको भाता हूँ मैं।
मारे ख़ुशी के खिलखिलाऊं मैं यूँ,
मैं गुलाब हूँ…

शान मेरी बढ़ती है तब जब,
राष्ट्रीय पर्वों पर तिरंगे से बिखेरें मुझे।
आसमां से लहरा कर आता जमीं पर,
भारत माँ के चरणों में बिखरता हूँ मैं।
गर्व होता धरा को चूम कर यूँ,
मैं गुलाब हूँ…

कभी नेहरू के कोट में सजता था मैं,
बड़ी शान से तब इतराता था मैं।
अब भी रखते हैं दिल में संभाले मुझे,
और प्यार की निशानी समझते मुझे।
खिलखिला कर सन्देशा देता हूँ यूँ,
मैं गुलाब हूँ…

कभी हार बनकर मैं गले में सजूं,
कभी जूड़े की शान बनूं मैं।
कभी शीश धरो तुम देवों के,
कभी अर्थी पे जाकर रोऊँ मैं।
चढूं शीश पे या चरणों में मैं यूँ,
मैं गुलाब हूँ…मैं गुलाब हूँ…॥

परिचय: सुलोचना परमार का साहित्यिक उपनाम उत्तरांचली’ है,जिनका जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में श्रीनगर गढ़वाल में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं। उत्तराखंड राज्य के देहरादून की निवासी श्रीमती परमार की शिक्षा स्नातकोत्तर है।आपकी लेखन विधा कविता,गीत,कहानि और ग़ज़ल है। हिंदी से प्रेम रखने वाली `उत्तरांचली` गढ़वाली में भी सक्रिय लेखन करती हैं। आपकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मानमहिमा साहित्य रत्न-२०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान तथा विभिन्न श्रवण कैसेट्स में गीत संग्रहित होना है। आपकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता,गीत,ग़ज़लकहानी व साक्षात्कार के रुप में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में आपके ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं। आपका कार्यक्षेत्र अब लेखन व सामाजिक सहभागिता हैl साथ ही सामाजिक गतिविधि में सेवी और साहित्यिक संस्थाओं के साथ जुड़कर कार्यरत हैं।श्रीमती परमार की रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आती रहती हैंl

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