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गृहलक्ष्मी के चरण

अमल श्रीवास्तव 
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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वंदन होता जहां ज्योति का,
रहता अमर प्रकाश वहीं।
जहां नारियों का पूजन है,
देवों का आवास वहीं॥

गृह लक्ष्मी के चरण जहां हैं,
ममता का मधुमास वहीं।
करुणा,समता,शुचिता,मृदुता,
प्रभुता का आभास वहीं॥

घर-घर मिलती दिव्य-भावना,
क्षमा,शांति नारी से ही।
सुख के सुमन और फल मिलते,
केवल इस क्यारी से ही॥

पत्नी है वह स्रोत,जहां से,
स्रवित सदा समरसता है।
पत्नी है वह सूत्रधार,
जिससे घर की पावनता है॥

मातु-पिता के बाद जिंदगी,
का यदि कोई रिश्ता है।
तो वह पति-पत्नी का है,
जो जनम-जनम तक चलता है॥

पत्नी है वह प्रकृति जहां पर,
कुसुम मनोहर खिलते हैं।
मुदित,मधुर,मंगलमय जीवन,
के फल,रसमय मिलते हैं॥

धर्म,कर्म में,व्रत-निष्ठा से,
पति का साथ निभाती है।
स्नेह-सुधा का दीप जलाकर,
पति को राह दिखाती है॥

पत्नी ही माता बनकर के,
पति का वंश चलाती है।
कन्या दान पुनीत कृत्य,
करवाने का यश पाती है॥

बचपन से जाने कितने,
सपनों के महल सजाती है।
पति,पति गृह,अनुकूल मिले,
सब देवी,देव मनाती है॥

सुता,बहन के फर्ज निभाकर,
पत्नी बनकर आती है।
अनजाने घर में आकर,
घुल-मिल,रम,रच-बस जाती है॥

जिन रिश्तों में बाल्यकाल से,
युवा अवस्था तक रहती।
उनको सीमित कर पतिगृह में,
अपना सब अर्पण करती॥

तपती तरुणाई को देती,
छाया प्रेम लता बनकर।
विश्वासी मित्रों जैसी,
सुख-दुख की कथा-व्यथा बनकर॥

धैर्य धरा-सा है उर में,
नभ-सी विशालता चिंतन में।
संघर्षों का,बलिदानों का,
परिचय देती दुर्दिन में॥

पत्नी तो त्यागों में लिपटी,
पावन,करुण कहानी है।
बचपन है,पीहर के हित,
पति गृह हित पूर्ण जवानी है॥

सब कुछ उसका औरों का,
अपना आँखों का पानी है।
सोचो उससे बढ़कर क्या ?
जग में कोई बलिदानी है !

कुछ पति अपनी पत्नी से,
व्यवहार क्रूरतम करते हैं।
डॉट-डपट,गाली-गलौज कर,
मार-पीट भी करते हैं॥

पति के परिजन,इस कुकृत्य में,
उसका साथ निभाते हैं।
जेठ,ननद,जेठानी,देवर,
सास-ससुर मिल जाते हैं॥

ऐसे में बेचारी पत्नी,
अबला ही रह जाती है।
किससे कहे ? कहां जाए ?
बस कठपुतली बन जाती है॥

कुछ पत्नियां,पश्चिमी रंग में,
खुद को ऐसे ढाल लिया।
नीति,नियम,संयम,मर्यादा,
का हल स्वयं निकाल दिया॥

तिल का ताड़ बनाती हैं,
राई का पर्वत करती हैं।
बात-बात में पीहर जाने,
मर जाने को कहती हैं॥

रोना-धोना,उठा-पटक कर,
त्रिया चरित्र दिखाती हैं।
फूट डालकर,सास-ससुर को,
वृद्धाश्रम भिजवाती हैं॥

सभ्य समाज बनाने में,
ये दोनों बातें अनुचित हैं।
पतियों की ज्यादतियां,
पत्नी की स्वछंदता अनुचित है॥

पति-पत्नी में से कोई भी,
छोटे-बड़े नहीं होते।
दोपहिया गाड़ी के चक्के,
छोटे-बड़े नहीं होते॥

आओ अपनी भूल सुधारें,
शाश्वत का आह्वान करें।
पावन आश्रम इस गृहस्थ का,
सादर,सस्वर गान करें॥

पति-पत्नी दोनों मिल-जुल कर,
जीवन पथ निर्माण करें।
एक-दूसरे की गरिमा का,
ध्यान रखें,सम्मान करें॥

परिचय-प्रख्यात कवि,वक्ता,गायत्री साधक,ज्योतिषी और समाजसेवी `एस्ट्रो अमल` का वास्तविक नाम डॉ. शिव शरण श्रीवास्तव हैL `अमल` इनका उप नाम है,जो साहित्यकार मित्रों ने दिया हैL जन्म म.प्र. के कटनी जिले के ग्राम करेला में हुआ हैL गणित विषय से बी.एस-सी.करने के बाद ३ विषयों (हिंदी,संस्कृत,राजनीति शास्त्र)में एम.ए. किया हैL आपने रामायण विशारद की भी उपाधि गीता प्रेस से प्राप्त की है,तथा दिल्ली से पत्रकारिता एवं आलेख संरचना का प्रशिक्षण भी लिया हैL भारतीय संगीत में भी आपकी रूचि है,तथा प्रयाग संगीत समिति से संगीत में डिप्लोमा प्राप्त किया हैL इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स मुंबई द्वारा आयोजित परीक्षा `सीएआईआईबी` भी उत्तीर्ण की है। ज्योतिष में पी-एच.डी (स्वर्ण पदक)प्राप्त की हैL शतरंज के अच्छे खिलाड़ी `अमल` विभिन्न कवि सम्मलेनों,गोष्ठियों आदि में भाग लेते रहते हैंL मंच संचालन में महारथी अमल की लेखन विधा-गद्य एवं पद्य हैL देश की नामी पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैंL रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी केन्द्रों से भी हो चुका हैL आप विभिन्न धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े हैंL आप अखिल विश्व गायत्री परिवार के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। बचपन से प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कृत होते रहे हैं,परन्तु महत्वपूर्ण उपलब्धि प्रथम काव्य संकलन ‘अंगारों की चुनौती’ का म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा प्रकाशन एवं प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा द्वारा उसका विमोचन एवं छत्तीसगढ़ के प्रथम राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय द्वारा सम्मानित किया जाना है। देश की विभिन्न सामाजिक और साहित्यक संस्थाओं द्वारा प्रदत्त आपको सम्मानों की संख्या शतक से भी ज्यादा है। आप बैंक विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. अमल वर्तमान में बिलासपुर (छग) में रहकर ज्योतिष,साहित्य एवं अन्य माध्यमों से समाजसेवा कर रहे हैं। लेखन आपका शौक है।

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