कुल पृष्ठ दर्शन : 235

घर ही नहीं,घट को भी रोशन करें

ललित गर्ग
दिल्ली

*******************************************************************


भारत को त्यौहारों का देश माना जाता है। दीपावली सबसे अधिक प्रमुख त्यौहार है। यह त्यौहार दीपों का पर्व है। जब हम अज्ञान रूपी अंधकार को हटाकर ज्ञान रूपी प्रकाश प्रज्ज्वलित करते हैं तो हमें एक असीम और आलौकिक आनन्द का अनुभव होता है। दीपावली शब्द संस्कृत से लिया गया है। दीपावली दो शब्दों से मिलकर बना होता है दीप और आवली जिसका अर्थ होता है दीपों से सजा। इसीलिये दीपावली ज्ञान रूपी प्रकाश का प्रतीक पर्व है। हर घर,हर
आँगन,घर बस्ती,हर गाँव में सब-कुछ रोशनी से जगमगा हो जाया करता है। आदमी मिट्टी के दीए में स्नेह की बाती और परोपकार का तेल डालकर उसे जलाते हुए भारतीय संस्कृति को गौरव और सम्मान देता है, क्योंकि दीया भले मिट्टी का हो मगर वह हमारे जीने का आदर्श है,हमारे जीवन की दिशा है,संस्कारों की सीख है,संकल्प की प्रेरणा है और लक्ष्य तक पहुँचने का माध्यम है। यह पर्व घर ही नहीं,घट को भी रोशन करने का अवसर है,इसे मनाने की सार्थकता तभी है जब भीतर का अंधकार दूर हो।
अंधकार जीवन की समस्या है और प्रकाश उसका समाधान। जीवन जीने के लिए सहज प्रकाश चाहिए। प्रारंभ से ही मनुष्य की खोज प्रकाश को पाने की रही। अंधकार हमारे अज्ञान का,दुराचरण का,दुष्टप्रवृत्तियों का, आलस्य और प्रमाद का,बैर और विनाश का, क्रोध और कुंठा का,राग और द्वेष का,हिंसा और कदाग्रह का अर्थात अंधकार हमारी राक्षसी मनोवृत्ति का प्रतीक है। जब मनुष्य के भीतर असद् प्रवृत्ति का जन्म होता है,तब चारों ओर वातावरण में कालिमा व्याप्त हो जाती है। अंधकार ही अंधकार नजर आने लगता है। मनुष्य हाहाकार करने लगता है। मानवता चीत्कार उठती है। अंधकार में भटके मानव का क्रंदन सुनकर करुणा की देवी का हृदय पिघल जाता है। ऐसे समय में मनुष्य को सन्मार्ग दिखा सके,ऐसा प्रकाश स्तंभ चाहिए। इन स्थितियों में हर मानव का यही स्वर होता है कि-प्रभो,हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। बुराइयों से अच्छाइयों की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। इस प्रकार हम प्रकाश के प्रति, सदाचार के प्रति,अमरत्व के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करते हुए आदर्श जीवन जीने का संकल्प करते हैं।
प्रकाश हमारी सद् प्रवृत्तियों का,सद्ज्ञान का, संवेदना एवं करुणा का,प्रेम एवं भाईचारे का, त्याग एवं सहिष्णुता का,सुख और शांति का, ऋद्धि और समृद्धि का,शुभ और लाभ का, श्री और सिद्धि का अर्थात् दैवीय गुणों का प्रतीक है। यही प्रकाश मनुष्य की अंतर्चेतना से जब जागृत होता है,तभी इस धरती पर सतयुग का अवतरण होने लगता है। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक अखंड ज्योति जल रही है। उसकी लौ कभी-कभार मद्धिम जरूर हो जाती है,लेकिन बुझती नहीं है। उसका प्रकाश शाश्वत प्रकाश है। वह स्वयं में बहुत अधिक दैदीप्यमान एवं प्रभामय है। इसी संदर्भ में महात्मा कबीरदासजी ने कहा था-‘बाहर से तो कुछ न दीसे,भीतर जल रही जोत।’
जो महापुरुष उस भीतरी ज्योति तक पहुँच गए, वे स्वयं ज्योतिर्मय बन गए। जो अपने भीतरी आलोक से आलोकित हो गए,वे सबके लिए आलोकमय बन गए। जिन्होंने अपनी भीतरी शक्तियों के स्रोत को जगाया, वे अनंत शक्तियों के स्रोत बन गए और जिन्होंने अपने भीतर की दीवाली को मनाया, लोगों ने उनके उपलक्ष्य में दीवाली का पर्व मनाना प्रारंभ कर दिया।
भगवान महावीर ने दीपावली की रात जो उपदेश दिया,उसे हम प्रकाश पर्व का श्रेष्ठ संदेश मान सकते हैं। भगवान महावीर की यह शिक्षा मानव मात्र के आंतरिक जगत को आलोकित करने वाली है। तथागत बुद्ध की अमृत वाणी ‘अप्पदीवो भव’ अर्थात ‘आत्मा के लिए दीपक बन’ वह भी इसी भावना को पुष्ट कर रही है। इतिहासकार कहते हैं कि जिस दिन ज्ञान की ज्योति लेकर नचिकेता यमलोक से मृत्युलोक में अवतरित हुए,वह दिन दीपावली का दिन था। यद्यपि लोक मानस में दीपावली एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में अपनी व्यापकता सिद्ध कर चुका है। फिर भी यह तो मानना ही होगा कि जिन ऐतिहासिक महापुरुषों के घटना प्रसंगों से इस पर्व की महत्ता जुड़ी है,वे अध्यात्म जगत के शिखर पुरुष थे। इस दृष्टि से दीपावली पर्व लौकिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता का अनूठा पर्व है।
हमारे भीतर अज्ञान का तमस छाया हुआ है। वह ज्ञान के प्रकाश से ही मिट सकता है। ज्ञान दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाश दीप है। जब ज्ञान का दीप जलता है तब भीतर और बाहर दोनों आलोकित हो जाते हैं। अंधकार का साम्राज्य स्वतः समाप्त हो जाता है। ज्ञान के प्रकाश की आवश्यकता केवल भीतर के अंधकार मोह-मूच्र्छा को मिटाने के लिए ही नहीं, अपितु लोभ और आसक्ति के परिणामस्वरूप खड़ी हुई पर्यावरण प्रदूषण, हिंसा-आतंकवाद और अनैतिकता जैसी बाहरी समस्याओं को सुलझाने के लिए भी जरूरी है।
आतंकवाद,भय,हिंसा,प्रदूषण,अनैतिकता, ओजोन का नष्ट होना आदि समस्याएँ इक्कीसवीं सदी के मनुष्य के सामने चुनौती बनकर खड़ी है। आखिर इन समस्याओं का जनक भी मनुष्य ही तो है,क्योंकि किसी पशु अथवा जानवर के लिए ऐसा करना संभव नहीं है। आतंकवाद की समस्या का हल तब तक नहीं हो सकता,जब तक मनुष्य अनावश्यक हिंसा को छोड़ने का प्रण नहीं करता,इसलिये दीपावली को अहिंसा की ज्योति का पर्व बनाना होगा।
हालाँकि दीपावली एक लौकिक पर्व है। फिर भी यह केवल बाहरी अंधकार को ही नहीं, बल्कि भीतरी अंधकार को मिटाने का पर्व भी बने। हम भीतर में धर्म का दीप जलाकर मोह और मूर्च्छा के अंधकार को दूर कर सकते हैं। दीपावली के मौके पर सभी आमतौर से अपने घरों की साफ-सफाई, साज-सज्जा और उसे संवारने-निखारने का प्रयास करते हैं। उसी प्रकार अगर भीतर चेतना के आँगन पर जमे कर्म के कचरे को बुहारकर-मांज कर साफ किया जाए,उसे संयम से सजाने-संवारने का प्रयास किया जाए और उसमें आत्मा रूपी दीपक की अखंड ज्योति को प्रज्वलित कर दिया जाए तो मनुष्य शाश्वत सुख, शांति एवं आनंद को प्राप्त हो सकता है। महान दार्शनिक संत आचार्य श्री महाप्रज्ञ लिखते हैं-हमें यदि धर्म को,अंदर को,प्रकाश को समझना है और वास्तव में धर्म करना है तो सबसे पहले इंद्रियों को बंद करना सीखना होगा। सारी इंद्रियों को विश्राम देकर बिलकुल स्थिर और एकाग्र होकर अपने भीतर झाँकना शुरू कर दें और इसका नियमित अभ्यास करें तो एक दिन आपको कोई ऐसी झलक मिल जाएगी कि आप रोमांचित हो जाएँगे। आप देखेंगे-भीतर का जगत कितना विशाल है, वहाँ कोई अंधकार नहीं है,कोई समस्या नहीं है। आपको एक दिव्य प्रकाश मिलेगा।
दीपावली पर्व की सार्थकता के लिए जरूरी है,दीये बाहर के ही नहीं,दीये भीतर के भी जलने चाहिए। दीए का संदेश है-हम जीवन से कभी पलायन न करें,जीवन को परिवर्तन दें,क्योंकि पलायन में मनुष्य के दामन पर बुजदिली का धब्बा लगता है,जबकि परिवर्तन में विकास की संभावनाएँ जीवन की सार्थक दिशाएँ खोज लेती हैं। असल में दीया उन लोगों के लिए भी चुनौती है जो अकर्मण्य, आलसी और चरित्रहीन बनकर सफलता की ऊँचाइयों के सपने देखते हैं,जबकि दीया दुर्बलताओं को मिटाकर नई जीवनशैली की शुरुआत का संकल्प है।

Leave a Reply