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छह सौ वर्ष बाद भी प्रासंगिक है संत रविदास की समतामूलक समाज की क्रांतिकारी अवधारणा-डॉ. ‘मानव’

विचार गोष्ठी...

नारनौल (हरियाणा)।

‘मन चंगा, तो कठौती में गंगा’ का उद्घोष करने वाले रविदास मानवीय चेतना-संपन्न संत और साधक होने के साथ एक क्रांतिकारी चिंतक भी थे। उनके द्वारा प्रस्तुत समतामूलक समाज की कल्याणकारी अवधारणा छह सौ वर्ष बाद आज भी प्रासंगिक है।

यह कहना है वरिष्ठ साहित्यकार और सिंघानिया विश्वविद्यालय पचेरी बड़ी राजस्थान में हिंदी-विभाग के अध्यक्ष डॉ. रामनिवास ‘मानव’ का। मनुमुक्त ‘मानव’ मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा मनुमुक्त भवन में संत रविदास की ६४७वीं जयंती पर विचार-गोष्ठी में उन्होंने स्पष्ट किया कि गुलामी और राजशाही के उस दौर में संत रविदास ने ‘बेगमपुरा गांव’ के रूप में, कार्ल मार्क्स से भी शताब्दियों पूर्व, आदर्श समाज की जो परिकल्पना की थी, उसे पढ़कर आज भी आश्चर्य होता है। डॉ. जितेंद्र भारद्वाज द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना-गीत के उपरांत डॉ. पंकज गौड़ के कुशल संचालन में हुई इस गोष्ठी में इंद्रप्रस्थ लिटरेरी फेस्टिवल की प्रदेशाध्यक्ष डॉ. कृष्णा आर्य ने बतौर अध्यक्ष उपस्थित होकर कहा कि उनसे आज भी समाज को समुचित मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है। इस अवसर पर न्यासी डॉ. कांता भारती, प्रो. अंजू निमहोरिया, दलजीत गौतम व डॉ. महताब सिंह आदि ने भी संत रविदास को श्रद्धांजलि अर्पित की।

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