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जनतंत्र में मतदाता की अहम भूमिका

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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भारत एक गणतांत्रिक देश है। एक गणतांत्रिक देश में सबसे अहम होता है चुनाव और मत देना। गणतंत्र एक यज्ञ की तरह होता है, जिसमें मतों की आहूति बेहद अहम मानी जाती है। यहां एक मत भी सरकार और सत्ता बदलने के लिए काफी होता है। याद करिए वह समय, जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार मात्र १ मत से अपनी सरकार बचाने में नाकाम रही थी। अब आप सोचिए कि ‘आलस’ और ‘मेरे एक मत से क्या बदलेगा’ जैसे तकियाकलामों की वजह से देश को कितना नुकसान हुआ है ?
सामाजिक संचार में भारतीय व्यवस्था और गंदी राजनीति पर बड़ी-बड़ी बहस करने वाले अक्सर भारतीय गणतंत्र के इस यज्ञ में सिर्फ इसलिए मत डालने नहीं जाते, क्यूंकि उन्हें यहां कतार में लगता पड़ता है, कुछ देर के लिए अनुशासन का पालन करना पड़ता है। जो लोग ऐसा करते हैं, वह यह भूल जाते हैं कि अनुशासन के बिना किसी भी पराधीन देश को स्वतंत्रता नहीं मिली। यहां तक कि भारत को भी आजादी के लिए गांधी जी द्वारा बनाए गए कड़े अनुशासन में रहना पड़ा था। इस आजादी को बनाए रखने में हमारी गणतांत्रिक प्रणाली बेहद अहम है। गणतांत्रिक प्रणाली तभी सुचारु रूप से चल सकती है, जब हर इंसान अपने मत का प्रयोग करे और अपनी इच्छा-अनिच्छा को जाहिर करे।
आपको लगता है कि पूरा तंत्र ही खराब हो चुका है, तो यह मत भूलिए कि आप भी उसी का हिस्सा हैं। एक छोटी-सी बात सोच कर देखिए। अगर अपने क्षेत्र में सही विधायक को चाहेंगे तो उसके लिए आप मतदान करेंगे। आप खुद अपने मत के साथ परिजनों से भी उसी को मत देने के लिए कहेंगे। इस तरह आपकी कोशिश रंग लाएगी और आपके क्षेत्र में एक बेहतरीन विधायक चुनकर आएगा, जो आपके क्षेत्र के लिए कार्य करेगा। उसी तरह अगर आप देश के आला नेता और यहां तक कि प्रधानमंत्री को भी बदलना चाहते हैं, तो आपका एक मत भी बहुत अहम होगा।
इसी दिशा में भारतीय मतदाताओं के मतदान के प्रति घटते रुझान को दूर करने के लिए साल २०११ से भारतीय निर्वाचन आयोग ने हर साल ‘राष्ट्रीय मतदाता दिवस’
(२५ जनवरी) मनाने का निर्णय लिया है। दरअसल, यह दिन सभी मतदाताओं के नाम है, ताकि उन्हें लोकतंत्र के प्रति उनके दायित्वों की याद रहे और इसके महत्व को समझ सकें। २६ जनवरी से पहले इस दिवस की प्रासंगिकता बेहद सटीक है।
दरअसल, मतदाता और मत ही भारतीय लोकतंत्र या किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र का मूल आधार होता है। पिछले कई वर्षों से भारतीय लोकतंत्र में मतदाताओं की मतदान में कम होती रुचि जनता की लोकतंत्र में घटती आस्था को इंगित करती है। इससे देश के राजनेताओं का चिंतित होना स्वाभाविक है। इसी चिंता को खत्म करने के लिए सरकार इस दिन कई बड़े कदम उठाती है, ताकि अधिक से अधिक मतदाता मत का प्रयोग कर सकें, खासकर युवा वर्ग। सरकार की यह कोशिश रंग भी लाई है, जिसका प्रमाण है उप्र विधानसभा और गुजरात चुनावों में हुआ कीर्तिमान मतदान।
भारत सरकार का यह जागरुकता अभियान अपने-आपमें उल्लेखनीय कदम है, परंतु मतदाता सूची में नामांकन की प्रक्रिया में और भी कई ऐसी कठिनाइयां हैं जिन पर प्रभावी निर्णय की जरूरत है।
जब तक एक मतदाता को अपने मत का अर्थ नहीं समझ में आएगा, तब तक भारत का तंत्र बदलना मुश्किल है। तंत्र को बदलने के लिए सभी को गणतंत्र का टीका लगाना होगा। मतदाताओं को समझना होगा कि उनका एक मत केवल सरकार ही नहीं, बल्कि व्यवस्था बदलने का औजार भी बन सकता है, और इसके जरिए खुद उस मतदाता का भाग्य भी बदल सकता है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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