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जनभाषा में न्याय के लिए न्यायपालिका से ही जंग

डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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भारत भाषा सेनानी हरपाल सिंह राणा….

हर साल १५ अगस्त को हम स्वतंत्रता दिवस तो मनाते हैं लेकिन बिना स्वभाषा के स्व तंत्र कैसे हो सकता है और बिना स्व तंत्र के देश सही अर्थों में स्वतंत्र कैसे हो सकता है ? भारत की भाषा हिंदी को उसका सही स्थान दिलवाने की लड़ाई बहुत कम व्यक्तियों ने लड़ी है। उन्हीं चंद सिपाहियों में एक नाम है कादीपुर(दिल्ली) के हरपाल सिंह राणा, जो पिछले ३० वर्षों से देश में हिंदी को कानूनी दर्जा और सही स्थान दिलवाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। जो जनभाषा में न्याय के लिए न्यायपालिका से ही न्याय की जंग लड़ रहे हैं।
हरपाल सिंह राणा बताते हैं कि बहुत कम व्यक्तियों को ही मालूम है कि भारतीय न्याय व्यवस्था में सिर्फ जिला न्यायालय में ही नहीं,बल्कि उच्चतम न्यायालय में भी अब हिंदी में न केवल मुकदमा दायर किया जा सकता है, बहस की जा सकती है बल्कि उसका आदेश भी हिंदी में ही प्राप्त किया जा सकता है। हिंदी में मुकदमा दाखिल करने के लिए उच्चतम न्यायालय में न्यायालय की हिंदी समिति वादी की मदद भी करती है। यह सब मुमकिन हो पाया है हरपाल सिंह राणा के अथक परिश्रम की वजह से। दरअसल,वर्ष में २०१७ में श्री राणा ने उच्चतम न्या. की अंग्रेजी में बनी नियमावली को हिंदी में बनवाने के लिए बिना वकील के स्वयं मुकदमा दाखिल किया और स्वयं उच्चतम न्या. में हिंदी में वार्तालाप की। इसमें हरपाल सिंह राणा की मुख्य मांग को तो नहीं माना गया लेकिन कुछ ऐतिहासिक फैसले हुए। उच्चतम न्या. ने भी संविधान और हिंदी भाषा का सम्मान करते हुए स्वतंत्रता के बाद ऐतिहासिक पहल करते हुए इसी मुकदमे मैं पहली बार अपना आदेश हिंदी में जारी किया और कहा कि उच्चतम न्यायालय में हिंदी में मुकदमे दाखिल किए जा सकते हैं,मुकदमा दाखिल करने वाले व्यक्तियों की मदद उच्चतम न्यायालय की हिंदी समिति करेगी।
हरपाल सिंह राणा बताते हैं कि इससे पहले वर्ष २०१६ मैंने आजादी के बाद पहली बार जिला न्यायालय रोहिणी,दिल्ली में हिंदी में मुकदमा दाखिल किया था। ये उन्हीं के भागीरथ प्रयासों का परिणाम है कि आज दिल्ली के सभी जिला न्या. में हिंदी न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई और सभी जिला न्यायालय में हिंदी विभाग स्थापित किए गए। उन्होंने पटना उच्च न्यायालय में भी १९७२ से विचाराधीन हिंदी भाषा को लागू कराने के लिए हिंदी में मुकदमे में हिस्सा लिया,हिंदी में बहस की और उच्च न्यायालय,पटना ने ३० अप्रैल २०१९ को हिंदी लागू करने के लिए बिहार सरकार से अधिसूचना जारी करने के लिए कहा।
हरपाल सिंह राणा हिंदी को उसका सम्मान दिलाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसके लिए ‘भारतीय भाषा आंदोलन’ द्वारा संघ लोक सेवा आयोग पर भी लगातार १४ वर्षों तक विश्व के सबसे लंबे धरने में सहभागी रहे हैं, जिसमें देश के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह,पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह सहित अनेक महत्वपूर्ण व्यक्ति हिस्सा ले चुके हैं। इसके अलावा भारत सरकार और राज्य सरकारों में भी हिंदी भाषा लागू करवाने के लिए अनेक महत्वपूर्ण आदेश पारित करवाए। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कार्यालयों सहित अनेक विभागों,मंत्रालयों द्वारा कार्यालयों में अंग्रेजी में कार्य करने और अंग्रेजी में पत्र भेजने के खिलाफ की गई कार्रवाई में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कार्यालय सहित अनेक कार्यालय खेद जता चुके हैं और पत्रों का जवाब हिंदी में देने का लिखित में आश्वासन दे चुके हैं।
वे कहते हैं कि आज अंग्रेजी का विरोध करने की आवश्यकता नहीं है,बल्कि हिंदी को और राज्यों में राज्यों की भाषाओं व मातृभाषा को बढ़ावा देने की आवश्यकता है क्योंकि मातृभाषा के बगैर व्यक्ति गूंगा है और बगैर भाषा के स्वतंत्रता के आजादी अधूरी है।
नई शिक्षा नीति में भी मातृ भाषाओं पर जोर दिया गया है,लेकिन इसके लिए भी जनजागरण,एक लंबे संघर्ष और जन-आंदोलन की आवश्यकता है। संघ की राजभाषा तथा जन-भाषाओं के लिए किसी भी हद तक तन,मन और धन से जिस प्रकार वे लगे हैं, ऐसा दूसरा उदाहरण कम ही दिखता है।
भारतीय भाषाओं के ऐसे सजग प्रहरी,भारत-भाषा प्रहरी ही नहीं,भारत-भाषा सेनानी श्री राणा को ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ की ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ। आने वाले समय में जब भारत-भाषा सेनानियों का इतिहास लिखा जाएगा तो उनमें हरपाल सिंह राणा का नाम भी प्रमुखता से लिखा जाएगा।

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