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जन सेवाओं में प्रौद्योगिकी प्रयोग से भारतीय भाषाओं का उत्थान संभव

हैदराबाद(तेलंगाना)।

नवीनतम प्रौद्योगिकी के अधिकतम प्रयोक्ता वर्ग में बैंकों का बहुत महत्वपूर्ण अंश है। एक आम आदमी जिसे प्रौद्यगिकी का कुछ ज्ञान न भी हो किंतु वह बैंक का ग्राहक अवश्य होता है। प्रतिस्पर्धा के युग में बैंकों को आधुनिकतम प्रौद्योगिकी एवं बाजार की मांग के अनुरूप अपनी कार्य प्रणालियों में निरंतर परिवर्तन करने होते हैं। इस प्रकार आधुनिक प्रौद्योगिकी से आम नागरिक का संपर्क बैंकिंग के माध्यम से बहुत अधिक होता है। एटीएम कार्ड,ऑनलाइन बैंकिंग,पास बुक प्रविष्टियाँ,पैसों का डिजिटल स्थानांतरण जैसे अनेक दैनिक अवसरों पर प्रौद्योगिकी का प्रयोग होता है और इन सभी में स्थानीय भाषा का भी महत्वपूर्ण स्थान है। जन सेवाओं में प्रौद्योगिकी प्रयोग से भारतीय भाषाओं का उत्थान संभव है।
प्रौद्योगिकी और भाषा के साथ बैंकों के इस संयोग को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान, विश्व हिंदी सचिवालय,अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद एवं अन्य सहयोगी संस्थाओं के तत्वाधान में वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा आयोजित वेब संगोष्ठी में सभी अतिथियों के वक्तव्य से यह निष्कर्ष उभर कर आया। इसमें विषय प्रवर्तन प्रो. राजेश कुमार ने किया। डॉ. सपना गुप्ता (अध्यक्ष-अनुसंधान एवं भाषा विभाग,केंद्रीय हिंदी संस्थान,आगरा) ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम की रुपरेखा प्रस्तुत की।
इस अवसर पर केनरा बैंक के वरिष्ठ अधिकारी रमेश यादव ने कहा कि बैंक कर्मियों ने बैंक कार्यों के तनाव तथा जटिल प्रक्रियाओं को झेलते हुए जिंदादिली की मिसाल प्रस्तुत की है। उन्होंने बैंकिंग सेवाओं में प्रौद्योगिकी के प्रयोग के बारे में बताया जिससे बैंकों में कार्य बहुत ही आसान हुआ है। उन्होंने अपनी बैंक के विषय में कहा कि हिन्दी भाषा को गरिमा प्रदान करने के प्रयास में उच्च शिक्षा के लिए केन्द्र सरकार की प्रोत्साहन योजनाओं को लागू किया गया है। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि बैंकों में ग्राहकों को अपनी भारतीय भाषाओं में व्यवहार करना,जो उनका अधिकार है,न करके अंग्रेजी में ही बैंकिंग का काम-काज करना ज्या दा सरल लगता है। बैंक ऑफ बड़ौदा की महाप्रबंधक एवं डिजिटल संचालन की अध्यक्ष श्रीमती शीतल ने बैंकों में डिजिटल बैंकिंग के महत्व के बारे में बताया कि,ग्राहक को भाषा के माध्यम से विभिन्न प्रकार की सूचनाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। बैंक अपेक्षित सेवाओं पर कार्य कर रहीं हैं,जिससे आने वाले समय में वे सेवा किस भाषा में लेने चाहते हैं,उन्हें उपलब्ध कराई जा सके।
तकनीकी विशेषज्ञ बालेंदु दाधीच ने बैंकिंग और भाषा के प्रश्न पर चर्चा करते हुए कहा कि बैंकिंग एक जनसेवा है और इस प्रक्रिया को सभी तक पहुंचाने में भाषा एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। बैंक नोट पर १५ भारतीय भाषाओं का प्रयोग किया गया है। प्रौद्योगिकी के आने से कई चुनौतियां आईं है किंतु कई सारे समाधान भी हुए हैं जिनका बैंकों को आम आदमी तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान है। बैंकों को आम आदमी से जुड़ने और अपना प्रसार व्यापक करने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग करने की आवश्यकता है। प्रौद्योगिकी संस्थानों को भारतीय भाषाओं के प्रति सम्मान दिखाना चाहिए और सरकार के स्तर पर हस्तक्षेप भी अपेक्षित है।
बैंकिग क्षेत्र के अनुभवी डॉ. जवाहर कर्नावट ने कहा कि भारतीय भाषाओं के लिए ग्राहकों में भी उत्साह होना चाहिए। वरिष्ठ अधिकारी डॉ. राजेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि बैंकों में भाषा के लिए तकनीक को लेकर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है और इसके समाधान के लिए निरंतर प्रयासरत रहना आवश्यक है। पंजाब नेशनल बैंक के प्रबंधक (राजभाषा) डॉ. साकेत सहाय ने कहा कि बैंकिंग जगत में भारतीय भाषाएं तकनीक के माध्यम से अछूत की श्रेणी से उठी हैं किंतु अभी भी काफी काम किया जाना शेष है।
नारायण कुमार ने बैंक के एक ग्राहक के रुप में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पिछले २०-२५ वर्षों में सरकारी संस्थाओं में विश्वास कम हो गया है। आम नागरिक सरकारी विद्यालयों में नामांकन कराना,सरकारी बैंकों में खाता खुलवाना नहीं चाहते हैं। भाषा चिंतक राहुल देव ने कहा कि पिछले कई दशकों में बैंकों ने प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कई छलांगें लगाई हैं। सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने भारतीय भाषाओं के प्रति उत्साह भी दिखाया है। बैंकों की प्रणाली के व्यवहार में वर्तनी की समस्या है जिसका एक कारण हिन्दी शब्दावली में एकरुपता नहीं होना है। भाषा को लेकर उत्साह इस समस्या का समाधान हो सकता है। इस संवाद से भारतीय भाषाओं के माध्यम से आम नागरिक को आर्थिक क्लब में प्रवेश मिलेगा।
केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष अनिल जोशी ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंक भारतीय भाषाओं में सेवाएं देते हैं लेकिन आम नागरिकों की मांग नहीं है। इसलिए बैंक मांग के अनुरूप भाषा में सेवा करते हैं और उसमें भारतीय भाषाएं पिछड़ जाती हैं। इसके समाधान के लिए ग्राहकों की सलाह लेनी चाहिए। भारतीय भाषाओं का उपयोग न करना देश को आर्थिक रूप से नुकसान पहुँचा रहा है। हमारे बनाए सॉफ्टवेयर का प्रयोग कितने लोग अपनी भारतीय भाषाओं में कर पाते हैं,इस पर ध्यान देने की जरुरत है। अपने विदेश प्रवास के बैंकिंग अनुभवों को भी साझा किया और कहा कि,हमारे देश के बैकिंग क्षेत्र को अपनी भाषाओं को सम्मान देते हुए आगे आना चाहिए। डॉ. रमेश यादव की पुस्तक इस दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
कार्यक्रम में हिंदी संस्थान(आगरा) की निदेशक प्रो. बीना शर्मा,क्षे़त्रीय निदेशक डॉ. राजवीर सिंह,डॉ. अपर्णा सारस्वत,डॉ.परमान सिंह,केंद्रीय हिंदी संस्थान(हैदराबाद केंद्र) के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. गंगाधर वानोडे,डॉ. जयशंकर यादव,भाषाविद प्रो. जगन्नाथन,विजय कुमार मल्होत्रा,डॉ. वरुण कुमार, डॉ. राजीव कुमार रावत,डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,डॉ. सुरेंद्र गंभीर,डॉ. मीरा सिंह,डॉ. तोमियो मिज़ोकामी आदि देश-विदेश के बहुत-से हिंदी प्रेमी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संयोजन अनूप भार्गव व प्रो. विजय मिश्र ने किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन बैंकिग क्षेत्र के अनुभवी डॉ. जवाहर कर्नावट ने तो,डॉ. मोहन बहुगुणा ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।

पुस्तक लोकार्पित

इस अवसर पर डॉ. रमेश यादव की पुस्तक ‘प्रौद्योगिकी,बैंकिंग और हिंदी’ का भी लोकार्पण हुआ। सभी विद्वानों ने पुस्तक की सराहना की और आशा व्यक्त की कि इससे बैंकिंग क्षेत्र में तकनीक प्रयोग में हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं को स्थापित करने में महत्वपूर्ण दिशा मिलेगी।

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