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जीना मगर दुश्वार तो होगा…

सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश) 
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बड़ा नादान ‘है कम्बख़्त कुछ ‘हुशयार तो होगा।
लगेगी ज़र्ब जब दिल ‘पर तो दिल बेदार तो होगा।

तू ही पहली तमन्ना थी तू ही है आख़िरी ख़्वाहिश,
क़रीब-ए-दार हो चाहे ‘तिरा दीदार तो होगा।

बला से आग लग जाए दिलों मेंं ‘इन रक़ीबों के,
मगर ‘खुश देख कर ‘तुझको तिरा बीमार तो होगा।

ये माना दिल लगाने के बहाने ढूँढ लेगा तू,
बिना मेरे तिरा जीना मगर दुश्वार तो होगा।

नहीं ‘है कोई भी ‘ख़ामी ‘ह़सीं ग़म्माज़ियों में पर,
सनम ‘बदनाम इससे आपका किरदार तो होगा।

मैं यह ही सोचकर हर इक मुक़दमा हार जाता हूँ,
कि मुझसे जीत कर शादाँ मिरा दिलदार तो होगा।

बुराई कुछ नहीं है आपमें थोड़ी ज़राफ़त है,
‘फ़राज़’ इस खेल से भी दिल कोई मिसमार तो होगा॥

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