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जीवन को सुगंधित बनाता ‘नीम’

संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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कल नाशिक जिले के उत्तरांचल इलाके में जाने का संजोग बना। इस मौसम में नदी का आँचलिक बड़ा ही खूबसूरत इलाका है। अगर किसी को बसंत ऋतु की मौजूदगी का प्रत्यक्ष आभास करना हो, तो बेशक इस इलाके में एक बार जरूर सैर करना चाहिए। दूर-दूर तक फैले सुजलाम, सुफलाम और सम्पन्न खेत, तरह-तरह की वृक्ष वल्लरिया, चारों तरफ फैले सह्याद्री के मनोरम और विलोभनीय शिखर और बीच से निकलती नागिन-सी सरपट सड़कें। ग्रीष्म की दुपहरिया की गर्मी भला कौन नहीं जानता, लेकिन खेतों की हरियाली, आम्र, नीम के पेड़ों की घनी छाँव के चलते यहाँ शीतलता का अहसास कराती मंद-मंद पवन बहुत सुखद तरीके से दिल को छूकर अपनी ठंडक का अहसास करती है। चिलचिलाती धूप में इस प्रकार का शीतल अहसास निश्चित ही मन को स्वर्ग जैसे अहसास से भर देता है।
अब के प्रवास के दौरान नीम के सघन वृक्षों ने मेरा ध्यान अपनी और ऐसा खीचा, जैसे कोई मधुरानी पराग और मकरंद भरे बागान की ओर खींची चली आती हो। मैं बरबस उन हजारों नीम के पेड़ों को निहारता रहा। महाकाय नीम वृक्षों पर फूटी नयी कोंपलें, हरीतम सघन पत्तियों की उमड़ी बाढ़ और नीम पल्लव के हवा के झोंकों पर बदलते विभ्रम देख ही रहा था कि एक सघन सुगंधी बयार मेरे तन-बदन से लिपट गई। उस बयार का आलिंगन इतना लुभावन था कि मेरा रोम-रोम पुलकित और श्रृंगारित हो उठा। देखते ही देखते वह खुशबू मेरी साँसों में घुलकर मेरा अंतर्मन रिझाने लगी। उस खुशबू को महसूस कर अगली घाटी की ओर चला ही था कि मैंने देखा यहाँ तो नीम की खुशबू का झंझावात उमड़ा हुआ है। उस सुगंध में डूबते हुआ मुझे लगा, कि जैसे लाखों- लाखों रंग-बिरंगी सुगंधी तितली मुझे चूम रही है। मैं तो उस नीम के फूलों की गंध में बावरा-सा हो गया। पलभर तो मन में विचार आया कि दिल-दुनिया को छोड़कर बस इसी घाटी में बसेरा कर लिया जाए, कितना मजा आएगा।
दूर-दूर खेतों की मेड़ पर, पहाड़ियों के अंगों पर, घाटियों में फैले नीम वृक्षों में चैत के इन दिनों गजब का उल्लास छाया हुआ है। सघन घनी पत्तियों से नीम के फूलों के गजरे इस प्रकार गर्दन उठाए हुए हैं, जैसे किसी रूप सुंदरी ने अपने केश संभार में अनगिनत मोगरे के गजरों को विलक्षण रूप से सजा रखा हो। हर नीम पर हरियाली से सनी उन घनी पत्तियों में शुभ्र धवल उमड़ते अन-गिनत श्वेत फूलों के गजरे ही गजरे छाए हुए। वाह, क्या अनुपम सौंदर्य है! ये खुशबू के उमड़ते झरने, गजरों का पत्तियों संग मिलाफ और हवा के झोंकों पर उनका खुशबू उड़ेलना, खुशबू का हवा संग गुत्थम-गुत्था होकर पूरे जंगल को खुशबू से भर देना, कितनी कमाल और पवित्रतम प्रक्रिया है। नीम की उठती खुशबू से मेरा अंतर्मन बाग- बाग हो गया। कितनी ही देर तक उस सौंदर्य को मैं अपलक निहारता रहा। जीवन को खुशबू से भर देनेवाले नीम वृक्षों के मानव जाति पर कितने अनगिनत उपकार हैं। घनी शीतल छाँव प्रदान करने वाले नीम भीषण चिलचिलाती धूप स्वयं झेलकर प्राणियों को कैसा सुख प्रदान करते हैं। हवा में प्राणवायु पिरोते ये नीम किस कदर वातायन में खुशबू घोल देते हैं, बसंत को बसंतिया रूप प्रदान करते हैं। अपनी रसभरी खुशबू से प्राणियों का अंतर्मन सुखमय करते हैं।

नीम की पत्तियाँ आयुर्वेद में कितनी ही औषधियों का महत्वपूर्ण घटक बनी हुई हैं। नीम के पेड़ों के मानव जाति पर अनगिनत उपकार हैं। मानव को इन विलक्षण पेड़ों के प्रति कृतज्ञ रहकर उन्हें हर हाल में संजोना चाहिए।

परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।