पटना (बिहार)।
बाल साहित्य के सृजन में अनवरत विकास देखा जा रहा है, खासकर बाल कविताएं पहले की अपेक्षा अधिक सारगर्भित और उपयोगी सिद्ध हो रही है। इस कारण से अन्य विधाओं में लिखने वाले भी बाल साहित्य सृजन की ओर मुड़ गए हैं। ऐसे ही साहित्यकारों में एक है प्रसिद्ध शायर घनश्याम ‘कालजयी’, जो बाल कविताएं भी खूब लिख रहे हैं। ‘कालजयी’ जी की बाल कविताएँ बच्चों को संदेश देती हैं, और उन्हें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देती है।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आभासी माध्यम में बाल साहित्य सम्मेलन का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि-‘मम्मी मैं भी पढ़ने जाऊँ / कर दो मेरी चोटी। मैगी-पास्ता टिफिन में दो, रोज न सब्जी रोटी।’ कविता में ‘कालजयी’ जी ने बच्चों की दुनिया को बहुत ही सुंदर और आकर्षक तरीके से प्रस्तुत किया है।
परिषद् द्वारा आयोजित इस अवसर साहित्य पाठशाला में बाल साहित्य सप्ताह एवं बाल साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता ‘कालजयी’ ने की। उन्होंने कहा कि बाल कविता लिखना एक कठिन कार्य है, बच्चों के लिए लिखने के लिए बच्चा बनना पड़ता है।
सम्मेलन में डॉ. सुनीता ने बच्चों को राम, कृष्ण, भगत सिंह, शिवाजी- सा बनने के लिए खूबसूरत बाल कविता का, तो पूनम दीक्षित ने गुरु की महिमा का बखान करती लाजवाब बाल कविता का पाठ किया। संतोष पुरी, अपूर्व कुमार, सिद्धेश्वर जी, सरिता गर्ग, घनश्याम कालजयी, राजप्रिया रानी और डॉ. अनुज प्रभात आदि ने भी सुन्दर और प्रेरक बाल कविताएं पढ़ीं।
सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापन
प्रभारी ऋचा वर्मा ने किया।