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तन-मन सराबोर

पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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‘आज बिरज में होरी रे रसिया’ गले में ढोलक लटकाए हुए गुलाटी जी गुलाल उड़ाते हुए होली के खुमार में पूरी तरह डूबे हुए रमन को आवाज दे रहे थे। वह तो पहले से ही प्लेट में गुलाल और गुझिया सजा कर तैयार बैठे थे। बस शुरू हो गया ‘रंग बरसे भीगे चुनरवाली…’ कालोनी में होली पर नाच-गाना और मस्ती जम कर होती है।
आज होली और रंगोत्सव के अवसर पर मधुरिमा जी किचन में कचौड़ी, दम आलू, दही बड़े आदि बनाने में बिजी थीं, लेकिन उनका ध्यान बार-बार सामने की बालकनी से आती आवाजों पर चला जाता था। थोड़ी देर पहले ही उनकी बेटी भव्या को उसकी सहेली नीति बुला कर ले गई थी। वह चाहते हुए भी मना नहीं कर पाईं थीं…। नीति की मौसी का बेटा श्रेयस आया हुआ है और अब रंग-गुलाल के साथ दोनों की छेड़छाड़ और हँसी, खिलखिलाहट की आवाजें उनके कानों में बार- बार गूँज रहीं थीं।
भव्या और नीति दिल्ली के एक ही कॉलेज में एम.बी.ए. कर रहीं थीं। दोनों बचपन से साथ-साथ, पढ़ी हैं और आपस में पटती भी बहुत है। श्रेयस हमेशा से गर्मी की छुट्टियों में आता रहा है और सब साथ में कैरम, लूडो, कार्ड्स, बैडमिंटन और यहाँ तक कि क्रिकेट भी खेल कर बड़े हुए हैं। इस बार वह कई सालों के बाद आया है और अब सब किशोर हो चुके हैं। वह कई दिनों से देख रहीं थी कि भव्या, श्रेयस के साथ घंटों तक बैठ कर हँसी-मजाक और बात करते हुए खिलखिलाती और ठहाके लगाती रहती हैं ।
“चल न आइसक्रीम खाने चलते हैं।”
“आज मेरा खाना मत बनाना मम्मा, हम लोग डोसा खाने जा रहे हैं?”… कहती हुई वह फुर्र से उड़ जाती…। कभी नीति साथ में होती तो कभी ये दोनों अकेले ही सिविल लाइन तक घूमने निकल जाते…।
आज तो होली का त्यौहार है, क्या भव्या श्रेयस से प्यार करने लगी है…? वैसे तो श्रेयस बहुत जाना- समझा-अच्छा लड़का है, परिवार भी अच्छा है, लेकिन इसकी माँ तो बहुत नकचढ़ी है। वह मन ही मन सोच रही थी… मेरी भव्या भी तो लाखों में एक है… श्रेयस ६ फुट का लंबा-गोरा-चिट्टा सजीला… आईटियन इंजीनियर लड़के का ख्वाब तो हर लड़की की माँ देखती है…। तभी उनके कानों में भव्या के जोर-जोर से हँसने की आवाज आई थी, साथ में श्रेयस की भी… “भव्या की बच्ची, अब मैं तुझे छोड़ूंगा नहीं…. अभी मजा चखाता हूँ…।”
उनका दिल धक से हो गया था… कहीं इतिहास अपने को दोहरा तो नहीं रहा है… उनकी आँखों के समक्ष उनका अपना अतीत चलचित्र की भांति सजीव हो उठा… ऐसा ही होली का अवसर था, जब उनकी मुलाकात नीरव से हुई थी। नीरव उसकी सहेली रिया की बुआ का बेटा था और ऐसा ही गठीला, सजीला सांवला-सा… साथ में हँसमुख, बात-बात पर फुलझड़ी-सी छोड़ने वाला… बस वह पहली नजर में ही वह उसे अपना दिल दे बैठी थी, और प्यार एकतरफा भी नहीं था। वह भी उन्हें उतना ही पसंद करता था…। बस, शुरू हो गई थी प्यार के परवानों की चाशनी में डूबी लंबी-लंबी बातें और मुलाकातें…। भला हो मोबाइल का… वह एम.ए. फाइनल में थी और नीरव तो बैंक में प्रोबेशनरी ऑफिसर… सब कुछ वेल सेटल्ड… कहीं कुछ भी गलत नहीं था।
प्यार भरी नजरें भला कभी छिप पाती हैं… नीरव उनसे मिलने जल्दी-जल्दी आने लगे, तो रिया की माँ को शक हुआ कि इन दोनों के बीच में कोई चक्कर तो नहीं चल रहा है…। हाँ, यही सच है… सोचते ही उनके चेहरे पर मुस्कान छा गई थी…। वह दोनों अपने भविष्य के सपनों की उड़ान भर रहे थे… जमीनी हकीकत की कंकरीली राहों का न ही गुमान था, और न ही अनुमान… वह सपनों में खोई खुशियों के झूले में झूल रही थी…।
पापा-मम्मी रिश्ते की बात करने के लिए नीरव के घर पहुंचे तो पवित्रा बुआ तो रिश्ते की बात सुनते ही बिफर पड़ीं थीं… “हम तो पहले जन्मकुंडली मिलवाएंगें… आपकी मधुरिमा तो सांवली है, मेरा बेटा दूध-सा गोरा… भला आप ही बताओ, कि जोड़ी कैसे बनेगी…? मेरे लाल के लिए तो कल ही कुंजीलाल सर्राफ अपनी बेटी की फोटो देकर गए हैं। कह रहे थे, कि मेरी तो इकलौती बेटी है। जो कुछ है… सब बेटी का ही है…।” समझदार के लिए इशारा काफी था… मम्मी-पापा उल्टे पैर लौट आए, लेकिन खुश थे कि उनकी बेटी ऐसे लोगों के चंगुल से बच गई, पर उनकी तो दुनिया बसने से पहले ही उजड़ गई थी। नीरव के बिना सारी दुनिया वीरान दिख रही थी… उनका जीना ही बेकार था, आदि-आदि निराशा के गर्त में डूब कर अपनी इहलीला समाप्त करने का उपाय खोजती रहती… यहाँ तक कि एक दिन उन्होंने अपनी कलाई की नस काट ली थी…। तभी एक दिन नीरव का फोन आया, कि “मधुरिमा हम लोग कोर्ट में शादी कर लेते हैं… हम तुम मुम्बई में रहेंगें… मम्मी-पापा से वह रिश्ता तोड़ लेगा।”
वह अपनी माँ के गले से लग कर फूट-फूट कर रो पड़ी थी… उन्होंने नीरव की सारी बात बता दी…।
“तुम क्या चाहती हो…?” एक बारगी बोली।
“आपके आशीर्वाद के बिना मैं अपने जीवन में आगे नहीं बढूंगीं।”
“फिर भूल जा नीरव को… तेरे पापा तुम्हारे लिए योग्य और अच्छा लड़का तलाशेंगें… जहां तुम खुश रहोगी…।” और उसी दिन नीरव को हमेशा के लिए भूल जाने का निश्चय कर लिया था। नीरव उनसे मिलने भी आया तो उन्होंने उसे पहचानने से भी इंकार कर दिया था।
ऐसी ही होली की एक शाम को रमन के साथ उनका रोका हो गया था और फिर उन्होंने उनकी ज़िंदगी में रंग भर दिए थे।
अचानक उनकी तंद्रा भंग हुई थी… बेटी भव्या रंगों से सराबोर थी और गालों पर गुलाल लगा हुआ था… आनंद के अतिरेक से उसके मुखड़े पर खुशियों की मुस्कान छाई हुई थी, वह चहक रही थी…. “मम्मा श्रेयस जरा भी नहीं बदला… वैसा ही मस्तमौला… बात-बात पर कहकहे लगाना…। आज बहुत मजा आया… श्रेयस ऐसा… श्रेयस वैसा… सुनते-सुनते वह कांप उठी थीं…। क्या उनका शक सही है…? भव्या के मन में भी श्रेयस के प्यार का अंकुर प्रस्फुटित हो उठा है…!
श्रेयस की माँ के मन में तो अपने पैसे का बड़ा घमंड है… मेरी भव्या तो उनके बरगद जैसे व्यक्तित्व के नीचे दब-कुचल कर कभी भी खुल कर साँस लेने को भी तरस कर रह जाएगी…।
“जाओ जल्दी नहा कर कपड़े बदलो, नहीं तो बीमार हो जाओगी।”
जब शाम को वह अपना लैपटॉप खोल कर बैठी तो उन्होंने उसे टटोलने के लिए पूछा, -“श्रेयस तुझे अच्छा लगता है क्या…?”
“मम्मा कैसी बात करती हो…! वह मिला… मस्ती हुई… हँसी- मजाक…. बस बाय…।”
“वह २ साल के लिए अमेरिका जा रहा है… आज रात की ही तो उसकी फ्लाइट है।”
“टैक्सी आ गई है, वह जा रहा है… तुम उससे बाय भी नहीं करोगी…!”
“नो मम्मा… मुझे अपना जरूरी एसाइनमेंट पूरा करना है…” उसने लापरवाही से कहा था।

उसका जवाब सुनते ही मधुरिमा के मन से शक के कुहासे छंट गए थे और अब उनका तन-मन होली के इंद्रधनुषी रंगों से सराबोर हो गया था…। उन्होंने अपनी खुशी जाहिर करने के लिए हाथों में गुलाल लेकर भव्या के गालों पर मल दिया और उसे प्यार से गले लगा लिया था।