डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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केन्द्र सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति के मसौदे पर तमिलनाडु में विवाद का क्या कारण है,यह समझ से परे हैl हिंदी राष्ट्रभाषा विगत सौ वर्षों से बनने के लिए तरस रही है,इसका मुख्य कारण हिंदी को प्रोत्साहित करना नहीं,वरन सब स्थानीय भाषाओं को भी समानता का अधिकार देना हैl आज हमारे देश में भाषा के विवाद के कारण राष्ट्रभाषा हिंदी न बनने से हमें बहुत अपमानित होना पड़ता हैl हर देश की भाषा अपने-अपने हिसाब से होती है,पर भारत वर्ष में हर दस मील पर पानी और वाणी बदल जाती हैl इससे देश में लालित्य देखने को मिलता है,पर हमारे देश का दक्षिणी भाग हमेशा से हिंदी विरोधी रहा हैl इसका कारण अज्ञात है या कह सकते हैं कि वे अपनी भाषा को बढ़ावा देकर हिंदी को अंगीकार नहीं करना चाहते हैंl
पिछले वर्ष सिंगापुर गया था,वहां पर भी तीन भाषाओं का प्रावधान है-पहला इंग्लिश,तमिल और वहां की स्थानीय भाषा को मान्यता हैl वहां वे वहां की स्थानीय भाषा का क्यों विरोध नहीं करते ?द्रविड़ क्षेत्र की पहले मूल भाषा संस्कृत भी रही है,जिससे आज भी ओड़िसा,आँध्रप्रदेश,तेलंगाना,कर्णाटक,केरल,तमिलनाडु में अपनी भाषा के साथ इंग्लिश का उपयोग करते हैं,पर हिंदी से परहेज़ है,जबकि हिंदी जनप्रिय,लोकप्रिय और सर्वग्राहकता वाली भाषा हैl आज भी हिंदी फिल्मों और उनके गानों को सुनने और देखने में रूचि रखते हैंl इसका मुख्य कारण मानसिक संकीर्णता है,और विरोध करने के लिए कोई भी मुद्दा होना चाहिएl
राजनीति बहुत घटिया और तुच्छ होती है,इसलिए केन्द्र सरकार से भी अपेक्षा है कि वह अन्य राज्यों से हिंदी भाषा में ही पत्राचार करे,तब उन राज्यों को उन पत्रों का जबाव देने के लिए अनुवादक रखना होंगेl इसके लिए केन्द्र सरकार कटिबद्ध हो कि वह अंग्रेजी भाषा का उपयोग कम से कम आवश्यकतानुसार करे,तब हिंदी भाषा विरोधी शासन को बाध्य होकर जबाव देना होगा,अन्यथा वे अपनी भाषा में जबाव देंगेl
इसके लिए केन्द्र सरकार सबसे पहले हिंदुस्तान की भाषा हिंदी को अंगीकार करे और फिर अन्य अहिन्दी भाषा-भाषी राज्यों को भी हिंदी के प्रयोग के लिए प्रेरित करेl जब तक केन्द्र सरकार न्यायालय,उच्च संस्थाएं अपनी तरफ से पहल नहीं करेंगी,तब तक यह प्रयास सफल नहीं होगाl हम विदेशों में जाकर भी अपनी भाषा में बात करें,पर यह काम कुछ घंटों के लिए होता है और उसके बाद हम चिकने घड़े जैसे हो जाते हैंl
इस बार केन्द्र सरकार अन्य हिंदी भाषी प्रांतों से सहयोग लेकर हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करे,और जो राज्य विरोध करते हैं,उन्हें कड़ाई से पालन करने को बाध्य करे,या उनकी रज़ामंदी लेl इस समय केन्द्र सरकार प्रचंड बहुमत में है,तो वह सक्षम कदम उठाकर हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का संकल्प पूरा करे,भले ही इसके लिए चाहे कितना भी विरोध सहना पड़ेl एक बार की कठोरता भविष्य के लिए समस्या का हल होगीl इस अनुकरणीय प्रयास के लिए सब हिंदीप्रेमी भी उनके समान विरोध करने में सक्षम हैंl साथ ही इंडिया
का नाम भारत
हो और हिंदी राष्ट्रभाषा होl
परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।