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सच्चाई झलक जाये

सूरज कुमार साहू ‘नील`
भोपाल (मध्यप्रदेश)
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चल मैं कुछ करता हूँ सच्चाई झलक जाये शायदl
मेरे लिए तेरे दिल में अच्छाई झलक जाये शायदl

झूठों का सहारा लेकर आया होगा यदि शहर मेरे,
मेरे अपने को भी छिपी बुराई झलक जाये शायदl

हँस-हँस कर गले मेरे पड़ा रहता है हरदम जो तू,
आज नहीं तो कल बात बनाई झलक जाये शायदl

क्या मेरे को तू नजर से गिराकर खुश रह पायेगा,
आज मेहनत मेरी कल कमाई झलक जाये शायदl

दिल सहम जाता है मेरा झूठे अरमान के खौफ से,
उस खौफ की तुझे भी परछाई झलक जाये शायदl

उम्मीद इतनी ही बस रखी है ‘नील’ आज भी यारों,
जाते वक्त अलविदा की कलाई झलक जाये शायदll

परिचय-सूरज कुमार साहू का साहित्यिक उपनाम `नील` हैl जन्म तारीख २५ जून १९९३ हैl वर्तमान में आपका निवास भोपाल (मध्यप्रदेश) कार्यक्षेत्र-सॉफ्टवेयर डेवलपर (भोपाल)का हैl सामाजिक गतिविधि में आप भोपाल के क्षेत्रीय एवं स्वयं की क्षेत्रीय सामाजिक संस्था से जुड़े रहकर कार्यक्रमों में सक्रिय हैंl इनकी लेखन विधा-काव्य (मुक्तक,ग़ज़ल,कविता)और लेख आदि हैl इनकी रचना का प्रकाशन स्थानीय सहित पत्रों सहित वेब पत्रिका में भी जारी हैl  भोपाल से ‘शब्द सुमन सम्मान-२०१७ ‘ एवं २०१८ में भोपाल से ‘अटल राजभाषा अलंकरण-२०१७’ सम्मान आपको प्राप्त हो चुका हैl ब्लॉग पर भी निरतंर लेखन में सक्रिय रहने वाले नील की विशेष उपलब्धि-साहित्य के माध्यम से विभिन्न क्षेत्र के वरिष्ठजनों का आशीर्वाद एवं लेखन हेतु मार्गदर्शन मिलना हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज में नई दिशा एवं परिवर्तन लाने का प्रयास हैl इनके लिए प्रेरणा पुंज-सीखने व लिखने की ललक एवं मार्गदर्शक विभिन्न संस्थाएं हैंl आपको भाषा ज्ञान-हिन्दी,अंग्रेजी का हैl रूचि-काव्य लेखन,चित्रकला और सामाजिक गतिविधि में शामिल होना हैl

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