सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
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बराबर ज़ुल्म ढाए जा रहा है।
वो मेरा दिल दुखाए जा रहा है।
न आया है, न आएगा कभी वो।
तू क्यों आँसू बहाए जा रहा है।
यक़ीनन फिर लगी है ज़र्ब उसको।
वो ख़ुद पर मुस्कुराए जा रहा है।
बजाए ख़ुद के चलने के यहाँ वो।
ज़माने को चलाए जा रहा है।
पुरानों की कहाँ है फ़िक्र उसको।
नए पौधे लगाए जा रहा है।
न जाने कब सुनेगा वो हमारी।
अभी अपनी सुनाए जा रहा है।
बुलाने पर भी जो आता नहीं था।
‘फ़राज़’ अब वो बुलाए जा रहा है॥