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दिशाभ्रमित होने से रोकना होगा नई पीढ़ी को

सुरेन्द्र सिंह राजपूत ‘हमसफ़र’
देवास (मध्यप्रदेश)
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यदि आप नहीं होते, तो…(शिक्षक दिवस विशेष)…

सिर्फ आप कल्पना कीजिए कि यदि सूर्य न होता तो क्या होता…? सारा जग अंधकार में डूबा होता, और सब ओर अंधेरा होता, क्या होता… हम दो कदम भी नहीं चल पाते। दोस्तों इसी प्रकार यदि शिक्षक या गुरुजन नहीं होते तो हम और हमारा जीवन किसी काम का नहीं होता। हम एक हिंसक पशु की तरह होते। हमारे जीवन में ज्ञान की ज्योति जला कर जीवन को रोशनी से भर देने वाले शिक्षकों को मैं कोटि-कोटि नमन करता हूँ। सिकंदर ने कहा था कि “मैं जीवन देने के लिए माता-पिता का ऋणी हूँ, लेकिन उस जीवन को जीने योग्य बनाकर खुशियों से भर देने के लिए अपने शिक्षकों-गुरुजनों का ऋणी हूँ।”
बात बिल्कुल सत्य है, माता-पिता हमें जन्म देते हैं लेकिन हमारे जनम को सार्थक शिक्षक बनाते हैं।
उनके ज्ञान की बदौलत ही हम अपने माता-पिता, परिवार, समाज, राष्ट्र और परम पिता परमेश्वर के प्रति हमारे कर्तव्यों को जानकर उनका पालन कर पाते हैं। दुनिया में जितने भी महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने न सिर्फ़ अपने देश में बल्कि पूरी दुनिया में अपने महान कार्यों से अपने राष्ट्र को गौरवान्वित किया है। उन सबको उस मुक़ाम तक पहुँचाने वाले शिक्षकों को कोटि-कोटि नमन करता हूँ।
भारत के प्रथम उप राष्ट्रपति, द्वितीय राष्ट्रपति शिक्षाविद, महान दार्शनिक, भारत रत्न डॉ. राधाकृष्णन सर्वपल्ली का जन्मदिवस पूरे भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले हम इस महान शख्शियत की पावन स्मृतियों को नमन करें। हमारे देश की संस्कृति के अनुसार तो माता-पिता, गुरु और शिक्षक इनके स्मरण, वन्दन एवं सेवा के लिए हर दिन, हर समय अनुकूल है, लेकिन कुछ देशों में शिक्षकों को सम्मान देने के लिए, उनके उत्कृष्ट कार्यों की सराहना करने के लिए , प्रोत्साहन व पारितोषिक देने के लिए शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा है।
डॉ. राधाकृष्णन के जन्मदिवस पर उनके कुछ छात्र व मित्र उनसे उनके जन्मदिन मनाने की अनुमति लेने गए तो डॉ. सर्वपल्ली ने कहा कि “मेरा जन्मदिन अलग से मनाने की कोई आवश्यकता नहीं, आप इस दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाएं तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी।” तभी (१९६२) से ये दिवस ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा।
हमारी संस्कृति में शिक्षक व गुरु को परमेश्वर से भी बड़ा माना गया है। महान सन्त कबीर ने गुरु की महत्ता को बताते हुए लिखा है-
‘गुरु गोबिन्द दोनों खड़े काके लागूं पायँ।
बलिहारी गुरु आपकी गोबिन्द दियो बताय॥’
अर्थात-हे गुरूदेव आपने ही तो हमें परमात्मा से साक्षात करवाया, वरना हम उस परम् पिता परमेश्वर को कैसे पहचान पाते। बात बिल्कुल सही है, गुरु का दर्जा परमेश्वर से बड़ा है। परमेश्वर ने हमको जन्म दिया, लेकिन गुरु ने ही अपने ज्ञान और शिक्षा से हमें कर्तव्यनिष्ठ व जिम्मेदार नागरिक बनाकर हमारे जन्म को सार्थक किया। जिस प्रकार एक नन्हा पौधा माली की गहन देख-रेख, खाद, पानी पाकर एक विशाल वृक्ष बनता है, अपनी शीतल छाँव से लोगों को सुकून देता है, अपने मीठे फल लोगों को देता है, ख़ुद अपने सिर पर धूप सहन करता है, पर हमको छाँव देता है। ठीक इसी प्रकार शिक्षक भी अपने नन्हें-मुन्ने विद्यार्थियों को शिक्षित बनाकर उन्हें अच्छे संस्कार देकर उनके जीवन पथ को आलोकित करते हुए उन्हें एक समर्थ, सक्षम, शक्तिशाली व जिम्मेदारी इंसान बनाते हैं।
इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि आज दुनिया में जितने भी महापुरूष हुए, उनको बनाने वाले उनके शिक्षक ही थे। हम हमारे नन्हें -मुन्ने बच्चों को, विद्यार्थियों और आने वाली पीढ़ी को शिक्षकों के महत्व को बताएं, तभी इसकी सार्थकता है।
आज हम देखते हैं कि हमारी आधुनिक पीढ़ी में शिक्षकों के प्रति सम्मान की भावना कम होती जा रही है, यह चिंतनीय है। हमें भावी पीढ़ी को शिक्षकों के महत्व को बताना होगा, और शिक्षकों को भी अपने श्रम, साधना, अध्यापन एवं संस्कार से नई पीढ़ी को दिशाभ्रमित होने से रोकना होगा। इसी में ‘शिक्षक दिवस’ की सार्थकता है। सभी शिक्षकों को नमन करते हुए कबीरदास जी के इस प्रेरक दोहे से वाणी को विराम देता हूँ-
‘गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है,
गढ़-गढ़ काढ़े खोट।
अंतर हाथ सहार दे,
बाहर मारे चोट॥’

परिचय-सुरेन्द्र सिंह राजपूत का साहित्यिक उपनाम ‘हमसफ़र’ है। २६ सितम्बर १९६४ को सीहोर (मध्यप्रदेश) में आपका जन्म हुआ है। वर्तमान में मक्सी रोड देवास (मध्यप्रदेश) स्थित आवास नगर में स्थाई रूप से बसे हुए हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का रखते हैं। मध्यप्रदेश के वासी श्री राजपूत की शिक्षा-बी.कॉम. एवं तकनीकी शिक्षा(आई.टी.आई.) है।कार्यक्षेत्र-शासकीय नौकरी (उज्जैन) है। सामाजिक गतिविधि में देवास में कुछ संस्थाओं में पद का निर्वहन कर रहे हैं। आप राष्ट्र चिन्तन एवं देशहित में काव्य लेखन सहित महाविद्यालय में विद्यार्थियों को सद्कार्यों के लिए प्रेरित-उत्साहित करते हैं। लेखन विधा-व्यंग्य,गीत,लेख,मुक्तक तथा लघुकथा है। १० साझा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है तो अनेक रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में भी जारी है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अनेक साहित्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। इसमें मुख्य-डॉ.कविता किरण सम्मान-२०१६, ‘आगमन’ सम्मान-२०१५,स्वतंत्र सम्मान-२०१७ और साहित्य सृजन सम्मान-२०१८( नेपाल)हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्य लेखन से प्राप्त अनेक सम्मान,आकाशवाणी इन्दौर पर रचना पाठ व न्यूज़ चैनल पर प्रसारित ‘कवि दरबार’ में प्रस्तुति है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और राष्ट्र की प्रगति यानि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त,सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एवं कवि गोपालदास ‘नीरज’ हैं। प्रेरणा पुंज-सर्वप्रथम माँ वीणा वादिनी की कृपा और डॉ.कविता किरण,शशिकान्त यादव सहित अनेक क़लमकार हैं। विशेषज्ञता-सरल,सहज राष्ट्र के लिए समर्पित और अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिये जुनूनी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“माँ और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती है,हमें अपनी मातृभाषा हिन्दी और मातृभूमि भारत के लिए तन-मन-धन से सपर्पित रहना चाहिए।”

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