राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड)
******************************************
यदि आप नहीं होते तो…(शिक्षक दिवस विशेष)…
यदि ना होते आप मेरे गुरु,
जीवन ना जाने होता कैसे शुरू
आपसे ही मैं जग को जान पाया,
पढ़ा, लिखा और फिर सम्मान कमाया।
यदि ना होते आप मेरे गुरु,
ना जाने जीवन होता कैसे शुरू
कैसे पढ़-लिख जग में आगे बढ़ता,
फिर कैसे पैरों पर खड़ा हो मैं हर्षाता।
गुरुवर आपने ही मुझे बताया है,
शब्दों को जोड़ बोलना सिखाया है
मैं तो था बेकार पड़ा पत्थर समान,
तराश कर अपने ही हीरा बनाया है।
गुरुवर आपने ही देकर ज्ञान,
दिखाए हमें परमेश्वर भगवान
मेरे लिए तो आप ही हो महान,
सत्य सनातन मेरे ईश्वर समान।
गुरु आपका ही ज्ञान जहां में समाया है,
आपने ही अटल, कलाम, गांधी बनाया है
आपके ही ज्ञान का सहारा लेकर गुरुवर,
हमने आज चाँद पर तिरंगा लहराया है।
गुरु कृपा बिना बनता कैसे अर्जुन महान,
गुरु कोप बिना भला कर्ण भूलता कैसे ज्ञान!
कहता ‘राजू’ गुरु का करूँ मैं सदैव ध्यान,
गुरु आशीष बिना ना जग का कल्याण॥
परिचय– साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।