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याद रखें गुरुजनों को सदा हम

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
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यदि आप नहीं होते तो…(शिक्षक दिवस विशेष)…

यदि आप ना होते पथप्रदर्शक,
कैसे होता भला भविष्य निर्माण
बिना आपके सीख ना पाते हम,
आचार व्यवहार उत्तम सन्मार्ग।

माता-पिता प्रथम हैं गुरुजन,
उनके चरणों पर करूँ सदा नमन
चलना सिखाते हाथ पकड़ कर,
स्नेह प्रेम संग सौहार्द सम्मान।

गुरु-शिक्षक-शिक्षिका देते ज्ञान,
आप ही देते जीवन दिशा ज्ञान
समय की महत्ता आप बताते,
और समझना निज का सम्मान।

बिन गुरु रह जाए ज्ञान अधूरा,
बल बुद्धि विश्वास प्रेरक मान
स्वप्न शिष्यों का करने साकार,
दिखाते मार्ग बढ़ो ले आन-बान।

संगम कराते विद्या संग ज्ञान,
सांसारिक प्रगति पथ अनेक
अक्षर कर्म विज्ञान हर शिक्षण,
ध्येय विश्वास जाते निज मान।

विवेकानंद के गुरु श्रीपरमहंस,
पुरुषोत्तम के रहे गुरु वशिष्ठ
श्री कृष्ण के गुरुवर सांदीपनि,
सम्राट चंद्रगुप्त के गुरु चाणक्य।

भटके ना शिष्य-शिष्या अनेक,
गढ़ते संवारते दिखाते सन्मार्ग
वैदिक काल से शिक्षण रीत,
ना मिले दिशा बिना गुरुजन।

यदि आप ना होते तो गुरुजन,
कैसे खुलता मंजिल का द्वार
निर्माण करें अनेक नागरिक,
विशाल भविष्य प्रगति विकास।

याद रखें गुरुजनों को सदा हम,
जैसे याद रखे एकलव्य गुरु द्रोण।
पग-पग प्रेरणा मुझ शिष्या को,
वंदन करूँ गुरुजन मिले आशीष॥

परिचय- डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है

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