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दूजा गाल नहीं देंगे…

डॉ.विद्यासागर कापड़ी ‘सागर’
पिथौरागढ़(उत्तराखण्ड)
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भाल झुकाकर सजी हुई नित,
अब हम थाल नहीं देंगे।
एक गाल पर थप्पड़ खाकर,
दूजा गाल नहीं देंगे॥

सहनशील हो बहुत सहा है,
गाली देते आये हो।
ऐसे आग लगाते हो तुम,
जैसे कोई पराये हो॥
भारत माँ को माँ मानो अब,
फोकट माल नहीं देंगे।
एक गाल पर थप्पड़ खाकर,
दूजा गाल नहीं देंगे…॥

बालक-बालक चेत गया है,
शिवा बसाया अब मन में।
खोया बहुत आज तक हमने,
भ्रमित रहे अपनेपन में॥
काँटे बोओगे,सुमनों की,
शोभित डाल नहीं देंगे।
एक गाल पर थप्पड़ खाकर,
दूजा गाल नहीं देंगे…॥

भोजन की थाली दी हमने,
निज की भूख नहीं देखी।
गले लगाया गैरों को भी,
होती चूक नहीं देखी॥
गरल बाँटते लोगों को अब,
पय की ताल नहीं देंगे।
एक गाल पर थप्पड़ खाकर,
दूजा गाल नहीं देंगे…॥

शूल चुभाओगे निकलेगा,
हाथों से अब भाला ही।
चिंगारी से अब निकलेगी,
देश प्रेम की ज्वाला ही॥
दिवसों में नफरत को छोड़ो,
तुमको साल नहीं देंगे।
एक गाल पर थप्पड़ खाकर,
दूजा गाल नहीं देंगे…॥

भाल झुकाकर सजी हुई नित,
अब हम थाल नहीं देंगे।
एक गाल पर थप्पड़ खाकर,
दूजा गाल नहीं देंगे॥

परिचय-डॉ.विद्यासागर कापड़ी का सहित्यिक उपमान-सागर है। जन्म तारीख २४ अप्रैल १९६६ और जन्म स्थान-ग्राम सतगढ़ है। वर्तमान और स्थाई पता-जिला पिथौरागढ़ है। हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले उत्तराखण्ड राज्य के वासी डॉ.कापड़ी की शिक्षा-स्नातक(पशु चिकित्सा विज्ञान)और कार्य क्षेत्र-पिथौरागढ़ (मुख्य पशु चिकित्साधिकारी)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत पर्वतीय क्षेत्र से पलायन करते युवाओं को पशुपालन से जोड़ना और उत्तरांचल का उत्थान करना,पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के समाधान तलाशना तथा वृक्षारोपण की ओर जागरूक करना है। आपकी लेखन विधा-गीत,दोहे है। काव्य संग्रह ‘शिलादूत‘ का विमोचन हो चुका है। सागर की लेखनी का उद्देश्य-मन के भाव से स्वयं लेखनी को स्फूर्त कर शब्द उकेरना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-सुमित्रानन्दन पंत एवं महादेवी वर्मा तो प्रेरणा पुंज-जन्मदाता माँ श्रीमती भागीरथी देवी हैं। आपकी विशेषज्ञता-गीत एवं दोहा लेखन है।

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