लोकार्पण…
इंदौर(मप्र)।
हिन्दी को हम जितना समृद्ध और सहज बनाएंगे, समाज भी उतना ही चैतन्य और सक्षम बनेगा। नवोदित रचनाकार अपनी रचनाओं में सरल और सहज शब्दों का प्रयोग करें तो निश्चित ही हिन्दी जन-जन की भाषा बन सकेगी। कविता संग्रह या अन्य प्रकाशन के प्रति युवा लोगों में दिलचस्पी बढ़ने लगी है, यह हिन्दी और रचनाकारों के लिए भी अच्छा संकेत है।
राष्ट्रकवि पं. सत्यनारायण सत्तन ने यह विचार हिन्दी साहित्य समिति के सभागृह में अर्पित महाजन के ‘सप्तरंग’ काव्य संग्रह का विमोचन करते हुए अध्यक्षीय उदबोधन में व्यक्त किए। राष्ट्रीय कवि डॉ. सरोज कुमार मुख्य अतिथि थे। हिन्दी परिवार के अध्यक्ष हरेराम बाजपेयी ने ‘सप्तरंग’ पर चर्चा करते हुए कहा कि कविता लिखने के लिए किसी विश्वविद्यालय या गुरुकुल में जाने की जरुरत नहीं है। हमारे आसपास जो कुछ हमें दिखता है, वही हमारी सृजनशीलता का कारण बनता है।
प्रारंभ में अर्पित महाजन, राजेन्द्र महाजन व अशोक डागा ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम में लेखक, साहित्यकार एवं प्रबुद्धजन उपस्थित रहे। संचालन दिनेश पाठक ने किया। आभार माना पं. दिनेश शर्मा ने।