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नाकाम मानव

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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जिंदगी भर काँटे बोकर,
फूलों की कामना करता
यह मानव,
कितना बेचारा व असहाय
नज़र आता है।

रचता साजिशें,
करता घृणा
देखता बुरी नज़रों से,
फिर भी
प्रेम की आस में जीता,
यह मानव
कितना बेचारा व असहाय,
नज़र आता है।

चाहता है गिराकर,
सभी को पीछे छोड़कर
सभी के वर्तमान से खेलता,
असत्य का दंभ भरता और
उज्जवल भविष्य,
की कामना करता
यह मानव,
कितना बेचारा व असहाय
नज़र आता है।

शक्ति व ताकत के परचम तले,
असहायों पर राज़ करता
अनैतिकता में,
नैतिकता का रंग भरने की
नाकाम व असफल कोशिश करता,
यह मानव
कितना बेचारा व असहाय,
नज़र आता है।

संतुष्टि की चाह में आए कोई भी,
राह में रौंदकर मानव रुपी पुष्प को
अपने जीवन में पुष्प खिलाने की,
नाकाम व असफल कोशिश करता
यह मानव,
कितना बेचारा व असहाय
नज़र आता है।

मसल कर दूसरों की,
भावनाओं को
जीवन में दूसरों के अन्धकार भर,
अपने जीवन को
रौशनी से पूर्ण करने की,
नाकाम व असफल कोशिश करता
यह मानव,
कितना बेचारा व असहाय
नज़र आता है।

शक्ति का सदुपयोग,
दूसरों के जीवन में रौशनी बिखेरना
जिसका सपना होना था,
खुद को जला दूसरों के जीवन में
उजाला करना,
जिसके जीवन का उद्देश्य होना था।
जहाँ ये सब होता,
वहीं मानव होता॥

परिचय–गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”

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