कुल पृष्ठ दर्शन : 265

You are currently viewing नारीत्व और दायित्व

नारीत्व और दायित्व

डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती
बिलासपुर (छतीसगढ़)
*************************************************

नारी को ‘अबला’ कह कर,
पुरुष बनता है महान
ना समझा नारी की शक्ति,
करता है निरंतर अपमान।

कोई बोझ नहीं,
वह सृजन की जननी है
नौ महीने गर्भ धारण कर,
नया जीवन देती है।

नव शिशु की रक्षा करना,
करते रहना पालन-पोषण
मुसीबत जब आए बच्चे पर,
कर दे एक धरती और गगन।

नारी कोई वस्तु नहीं,
जो मोल उसका लगाओगे
अपने स्वार्थ हेतु,
क्या हमेशा उसे डराओगे ?

नारी का दूसरा नाम ही,
है सभी प्रकार का दायित्व
हर ताकत क्षीण है,
जो देखा उसका ममत्व।

ममता का आँचल,
नारी जब फैलाए
प्रभु भी उसकी छाया में,
अपने को भूल जाए।

जीवन संगिनी बनकर,
पत्नी परिवार धर्म निभाती है
जीने की कला सिखाते-सिखाते,
जिदंगी मधुर गीत बन जाती है।

घर में जब एक नन्हीं परी आती है,
प्यारी बेटी के चहकने से
पिता बनने का दायित्व और सुख मिलता है,
उसकी किलकारियों से घर-बगिया बन जाता है।

कर्म करते ही रहना,
उसका स्वभाव है
कभी न देखा उसमें,
दायित्व का अभाव है।

जीना सीखा मैंने,
माँ के ही पाठ से
ममता की छाया में,
जीते हैं ठाठ से।

माँ, बहन, दादी, चाची,
सबने दिया है अपना ज्ञान।
सभी को यदि याद रखूं,
तो कहलाऊं सच्चा इंसान॥

Leave a Reply