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निर्मल मन प्राण,मेरे देश का किसान

विजयलक्ष्मी विभा 
इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)
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मेरे देश का किसान स्पर्धा विशेष…..

लहराते खेत गायें मीठा यह गान,
मेरे देश का किसान।
भोला नव जवान,
मेरे देश का किसान॥

गर्मी की तपती दोपहरी न देखे,
जाड़े की कठिन शीतलहरी न देखे
सावन में वर्षा बौछारों से कटती,
मेड़ों के तले खाई गहरी न देखे।
करता श्रमदान,मेरे देश किसान,
भोला नव जवान,मेरे देश का किसान…॥

आगे न देखे वो पीछे न देखे,
ऊपर न देखे और नीचे न देखे
हाथ में खरोंचों के घावों से रिसते,
मिट्टी में सने चुभे शीशे न देखे।
बोये जब धान,मेरे देश का किसान,
भोला नव जवान,मेरे देश का किसान…॥

बाबा की बूढ़ी विरासत ये खेती,
बाबू की पूरी नियामत ये खेती
दादी के बाल गोपालों की करती,
एक-एक साँस की हिफा़जत ये खेती।
करे अन्नदान,मेरे देश का किसान,
भोला नवजवान,मेरे देश का किसान…॥

दंगा फसाद झूठ छल बल न जानेे,
अपने में लीन कोई सम्बल न जाने
आज के परिश्रम से उगते जो अंकुर
उनके ठिकानों का वो कल न जाने।
निर्मल मन प्राण,मेरे देश का किसान,
भोला नव जवान,मेरे देश का किसान…॥

आपस में किस्सा कहानी की रातें,
बीते ज़माने की यादों की बातें
सीमित इच्छाओं से मानस पे होती,
ख़ुशहालियों की शीतल बरसातें।
सचमुच धनवान,मेरे देश का किसान,
भोला नव जवान,मेरे देश का किसान…॥

कर्तव्यनिष्ठा है जीवन की थाती,
सूरज को नमन सुबह,शाम दिया बाती
मांगे आशीष मेरी फसल लहलहा दे,
अनपढ़ किसान लिखे प्रभु जी को पाती।
भर दे खलिहान,मेरे देश का किसान
भोला नव जवान,मेरे देश का किसान…॥

देश के विकास की उठ आई लहर है,
अब तो हर गाँव लगे प्यारा शहर है
विद्यालय जाते किसानों के बच्चे,
बस्तों में भर लांय भावी प्रखर है।
बांटे नव ग्यान मेरे देश का किसान,
भोला नव जवान मेरे देश का किसान…॥

कृषकों का श्वेद गिरे लहके हरियाली,
जनता की दिखे कभी झोली न खाली
ऐसे रँग लाये किसानों की टोली,
समुचित आहार भरे जन-जन की थाली।
करता कल्याण,मेरे देश का किसान,
भोला नव जवान,मेरे देश का किसान…॥

क्षद्मवेशधारी से बचना रे भाई,
पावन चरित्र पर न लग जाये काई
सत्यं शिवं सुन्दरं शुभ प्रदाता,
उज्ज्वल पटल पर है उज्ज्वल छवि छाई।
है बड़ा महान,मेरे देश का किसान,
भोला नव जवान,मेरे देश का किसान…॥

परिचय-विजयलक्ष्मी खरे की जन्म तारीख २५ अगस्त १९४६ है।आपका नाता मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ से है। वर्तमान में निवास इलाहाबाद स्थित चकिया में है। एम.ए.(हिन्दी,अंग्रेजी,पुरातत्व) सहित बी.एड.भी आपने किया है। आप शिक्षा विभाग में प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त हैं। समाज सेवा के निमित्त परिवार एवं बाल कल्याण परियोजना (अजयगढ) में अध्यक्ष पद पर कार्यरत तथा जनपद पंचायत के समाज कल्याण विभाग की सक्रिय सदस्य रही हैं। उपनाम विभा है। लेखन में कविता, गीत, गजल, कहानी, लेख, उपन्यास,परिचर्चाएं एवं सभी प्रकार का सामयिक लेखन करती हैं।आपकी प्रकाशित पुस्तकों में-विजय गीतिका,बूंद-बूंद मन अंखिया पानी-पानी (बहुचर्चित आध्यात्मिक पदों की)और जग में मेरे होने पर(कविता संग्रह)है। ऐसे ही अप्रकाशित में-विहग स्वन,चिंतन,तरंग तथा सीता के मूक प्रश्न सहित करीब १६ हैं। बात सम्मान की करें तो १९९१ में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ.शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘साहित्य श्री’ सम्मान,१९९२ में हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा सम्मान,साहित्य सुरभि सम्मान,१९८४ में सारस्वत सम्मान सहित २००३ में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल की जन्मतिथि पर सम्मान पत्र,२००४ में सारस्वत सम्मान और २०१२ में साहित्य सौरभ मानद उपाधि आदि शामिल हैं। इसी प्रकार पुरस्कार में काव्यकृति ‘जग में मेरे होने पर’ प्रथम पुरस्कार,भारत एक्सीलेंस अवार्ड एवं निबन्ध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त है। श्रीमती खरे लेखन क्षेत्र में कई संस्थाओं से सम्बद्ध हैं। देश के विभिन्न नगरों-महानगरों में कवि सम्मेलन एवं मुशायरों में भी काव्य पाठ करती हैं। विशेष में बारह वर्ष की अवस्था में रूसी भाई-बहनों के नाम दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए कविता में इक पत्र लिखा था,जो मास्को से प्रकाशित अखबार में रूसी भाषा में अनुवादित कर प्रकाशित की गई थी। इसके प्रति उत्तर में दस हजार रूसी भाई-बहनों के पत्र, चित्र,उपहार और पुस्तकें प्राप्त हुई। विशेष उपलब्धि में आपके खाते में आध्यत्मिक पुस्तक ‘अंखिया पानी-पानी’ पर शोध कार्य होना है। ऐसे ही छात्रा नलिनी शर्मा ने डॉ. पद्मा सिंह के निर्देशन में विजयलक्ष्मी ‘विभा’ की इस पुस्तक के ‘प्रेम और दर्शन’ विषय पर एम.फिल किया है। आपने कुछ किताबों में सम्पादन का सहयोग भी किया है। आपकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भी रचनाओं का प्रसारण हो चुका है।

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