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न रोको…आँसू

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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रचना शिल्प:विधाता छँद -१२२२ १२२२ १२२२ १२२२…

कहो कुछ भी रखो कुछ नाम पर है जात पानी का,
सहे तन चोट को,सहता नहीं आघात पानी का।

कहो आँसू इसे या नैन जल या अश्क़ ये ही है,
रहे आतुर छलकने वेदना बन गात पानी का।

लबालब नेत्र सागर में भरा,ताकत बहुत इसकी,
हिला देता सिंहासन को,न पूछो बात पानी का।

गरम ठंडी,हजारों रूप आँसू के बने रक्खे,
मगरमच्छी घड़ियाली रहा है नात पानी का।

तरंगें दौड़ती,भीतर उफनता यह सदा बाहर,
उड़ा मन को डुबोता यह चक्रवात पानी का।

सहेली है बना यह नारियों का,लोग कहते हैं,
हठी ये मर्द की आँखों लगे हालात पानी का।

भिगो दें नैन खुशियों में,नहीं पर धार है लगती,
रहा रिश्ता सदा ही दर्द दृष्टिपात पानी का।

डुबोता बाढ़ में ये हिचकियों में लगा गोते,
भरी काली घनेरी,दु:ख अँधेरी रात पानी का।

न आहत कर न दुर्बल आह आँसू बन सतायेगा,
पलक छाजन बरसता बूंद बन बरसात पानी का।

विदाई प्रिय की बेला लगा दे आग सीने में,
बुझाता है यही आँसू,लगा बारात पानी का।

रुका आँसू कभी भीतर बड़ा भूकंप लाएगा,,
न रोको,राह बहते वेग बलात पानी का॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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