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परिवर्तन ही संसार का नियम

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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इस जीवन में वही आगे बढ़ते हैं, जो परिवर्तन की प्रक्रिया से भयभीत नहीं होते। वे भली-भाँति जानते हैं कि स्थिरता ही जड़ता,नीरसता और निष्क्रियता की जनक है। परिवर्तन ही संसार का नियम है। जो नए अनुभवों का स्वागत नहीं करता है,वह अपनी जीवन की ऊर्जा को गँवा बैठता है।
हम अपने चारों ओर देखते हैं कि जो कल तक महत्वपूर्ण वस्तुएँ थी,आज उनका कोई मूल्य नहीं रहा। यहाँ तक कि कल के प्रसिद्ध लोग आज में भुला दिए जाते हैं। जो इस जीवन में कुछ करने के लिए पैदा हुए हैं,उन्हें बीते को भूलना और आते हुए को स्वीकार करना ही पड़ेगा। यह जीवन रुकने के लिए नहीं मिला है। कितनी भी मुसीबत आए,तब भी रुकना उचित नहीं। रुकने के स्थान पर प्रतिकूलताओं से लड़ने की मनःस्थिति बनानी आवश्यक है। रात-दिन,जाड़ा-गर्मी,हानि-लाभ, मिलने और बिछुड़ने के अनेक प्रकार के परिवर्तन मनुष्य के जीवन में आते ही हैं। परस्पर विरोधी होते हुए भी ये एक सम्भावना अपने साथ लिए होते हैं। पतझड़ के आने से वसंत का आना सुनिश्चित हो जाता है, इसलिए जीवन को सजग बनाएं। ज़िन्दगी को होश में रखें। जो भी बदल रहा है,वो बदलेगा ही। आप उसे नहीं रोक सकते,क्योंकि परिवर्तन ही संसार का नियम है। कोई बहुत लम्बे समय पुराना आपका दोस्त आपको धोखा दे,तो आप उसे ऐसा करने से रोक नहीं सकते। हाँ,अगर आपका जीवन होश से भरा है,तो आप मानसिक,भावनात्मक और आर्थिक रूप से संभलकर अपने को संतुलित रख सकते हैं। जिस दोस्त के साथ आप रोज घूमते-मिलते-बैठते थे,अब आप ऐसा नहीं कर पाएंगे,यह परिवर्तन आपको स्वीकारना ही होगा।
दुनिया में परिवर्तन ही शाश्वत है। हमने किताबों में इतिहास को बदलने के बारे में अवश्य ही पढ़ा होगा। समय के साथ यह परिवर्तन आवश्यक था। जीवों से मनुष्यों के परिवर्तन के बारे में भी हम पूर्ण रूप से जानते हैं। इतिहास में मनुष्य कुछ और था, और आज के इस वैज्ञानिक युग में मानवों की परिभाषा कुछ और ही है। आज की इस रफ्तारभरी जिंदगी में लोग अपनी इच्छाओं के अनुसार खुद को बदलते रहते हैं। उनके मन मुताबिक काम न होने पर ये दूसरे या दुनिया को कोसते हैं। परिवर्तन के सिवा इस सृष्टि में स्थिर कुछ भी नहीं है। परिवर्तन एवं गति संसार का अनिवार्य नियम है। इसी में गति और जीवन है। मनुष्य का परिवर्तनशीलता धारण किए रहने में ही कल्याण है।
जो स्थिर जैसे दिखाई पड़ते हैं,उनमें स्थिरता नहीं है। यह सब कुछ गतिशील है। जड़ पदार्थ के अणु परमाणु के भीतर के कण सदा बन्द वृत्तों में गतिमान रहते हैं। शरीर के भीतर भी स्थिरता नहीं है। यहाँ तक कि चंद्रमा,सूर्य,पृथ्वी भी गतिमान रहते हैं। शरीर के भीतर भी स्थिरता नहीं है। शरीर के भीतर संपूर्ण अवयव स्वसंचालित प्रक्रिया द्वारा अपने-अपने कार्यों में निष्ठा पूर्वक जुटे रहते हैं। गति ही जीवन है और विराम मृत्यु।
निश्चलता तो जड़ जैसे दिखने वाले पहाड़ और चट्टानों में भी नहीं होती। उनके भीतर भी परमाणु की हलचल जारी रहती है। यहाँ तक कि,नक्षत्र,वृक्ष वनस्पति,नदी,नाले सबमें गति समान रूप से गति विद्यमान है।
जीवन में परिवर्तन होते रहते हैं। कहते हैं यही प्राकृतिक नियम है। यही परिवर्तन जीवन को नई दिशा देते हैं। जो स्थिर होते हैं,अर्थात परिवर्तन का चरित्र स्थिर होता है,कभी परिवर्तित नहीं होता। प्रकृति में पल-पल परिवर्तन होते हैं। इंसान का जीवन और प्रकृति निरंतर परिवर्तित होती रहती हैं। जमाने में भी परिवर्तन होते रहते हैं,परंतु परिवर्तन क्रिया स्थिर रहती है। जब संसार शुरू हुआ,तभी से परिवर्तन होता रहा है। परिवर्तन के नियम को जब हम स्वीकार करने से इनकार करने लगते हैं,तब हम दुखी होते हैं। हमें समझना होगा कि जब अच्छे दिन स्थाई नहीं रहते,तो बुरे दिन भी स्थाई नहीं रहेंगे। जीवन के परिवर्तन मनुष्य के धैर्य व स्थिरता की परख करते हैं।
कभी-कभी जीवन में परिवर्तन लाना भी आवश्यक हो जाता है,क्योंकि मनुष्य का जीवन एक जैसा रहेगा तो जीवन में नीरसता हो जाएगी,इसलिए मनुष्य को परिवर्तन को सकारात्मक भाव से ग्रहण करना चाहिए। कुछ परिवर्तन जिन्हें हम बदल नहीं सकते,जैसे जन्म के बाद हमारे विभिन्न अवस्थाओं का परिवर्तन,प्रकृति के नियमों का परिवर्तन। मनुष्य अपनी जरूरत के अनुसार परिवर्तन से अपनी जीवन-शैली में परिवर्तन लाता है,लाना भी चाहिए।परिवर्तन ही जीवन को गतिशीलता देता है,जीवन को नयापन देता है। आदिकाल से आज तक मानव का वातावरण रहन-सहन,सोच में,उसकी सारी गतिविधियों में जो परिवर्तन आया है,यही विकास की परिभाषा भी है।
जीवन का मार्ग राजपथ नहीं है,जो सीधा और सपाट हो,बल्कि जीवन का मार्ग कहीं सपाट,कहीं पथरीला,कहीं रेतीला और कहीं तो ऐसा है,जहाँ कोई रास्ता ही नहीं है। ज़िन्दगी के बदलावों को स्वीकारने के लिए पहले से तैयार रहना होगा।
एक ५ साल का बालक जिसने अभी जीवन को समझा भी नहीं था,१८७१ में अनाथ हो गया। पिता की हैजे से मृत्यु हो गई और माँ ने उसे छोड़कर दूसरी शादी कर ली। दादा की दुकान पर ८ साल की उम्र से जीवन के परिवर्तनों से संघर्ष करता हुआ वह बालक,जीवन के हर परिवर्तन का स्वागत करता रहा। एक दिन उसी की लिखी पुस्तक ‘मदर’ ने दुनिया में भावनाओं का समुद्र बहा दिया। यही बालक मैक्सिम गोर्की था।
जीवन की ऊर्जा को आप सही दिशा में तभी नियोजित कर सकते हैं,जब आप जीवन में होने वाले परिवर्तनों से संतुलित होकर सामंजस्य बिठाना और अवसर पैदा करना सीख जाएँ। कहा भी गया है-‘जिन्दगी एक सफर है सुहाना! यहाँ कल क्या हो किसने जाना।’

परिचय–गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”

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