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पहली मुलाकात जरूरी थी

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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पहली मुलाकात जरूरी थी,बस तुम्हें ही पाने के लिये,
नयनों में थे सपने,उन सपनों में तुम्हें ही बसाने के लिए।
चांद को देख सागर के दिल में,जो हर बार मचलता है,
वही लहरें जरूरी थी दिल में एक ज्वार उठाने के लिये॥

हवा का झोंका पहली बार छूकर तुझे,मुझसे टकराया,
मैं घबरायी-सी कांपी,एहसास तुमसे छुपाने के लिये।
मेरे अंदर,मेरे खुद के अलावा भी,कोई दूसरा है मेरा
मंडरा रहा था भँवरा,कली को यह राज बताने के लिये॥

लजा कर बैठी ही रही थी,मैं झुकाकर अपनी नजरें,
तेरा मुस्कराना भी जरूरी था,पलकों को उठाने के लिये।
कनखियां देख बसा रही थी सांवरे,तेरा चेहरा मन में,
लुका-छुपी शरारत भी जरूरी थी तुझे सताने के लिये॥

डर-सा उठ रहा था,कहीं तुम नाराज तो नहीं हो मुझसे,
कहीं मुस्करा कर चल तो ना दोगे,रस्म निभाने के लिये।
मैं तो अपना सब-कुछ हार बैठी थी पहली मुलाकात में,
मन में हैरान थी,दिल क्यूं धड़के इस अनजाने के लिये॥

परिचय–संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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