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प्रेम कहानियों की जगह भी नहीं बची

मंडला(मप्र)।

जीवन के इस प्रदूषित वन में कहीं खो गई हैं हमारे जीवन की प्रेम कहानियां!भौतिक सुखों के दिव्य स्वप्न में हम ऐसे खो गए हैं कि आदर्श और इंसानियत की बातें निरर्थक लगती हैं। स्वामी विवेकानंद, गौतम बुद्ध और महावीर जी की बातें महज कोरा उपदेश! फिर भला यह दुनिया कैसे समझेगी प्रेम की बातें! समकालीन साहित्य में कैसे लिखी जाएंगीं प्रेम की कहानियां ?
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में हैलो फेसबुक कथा सम्मेलन का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किए। सम्मेलन के विशिष्ट अतिथि डॉ.शरद नारायण खरे ( मध्यप्रदेश) ने कहा कि,यह सच है कि दबाव की ज़िन्दगी में जब प्रेम तिरोहित हो रहा है,तो प्रेम कहानियों की जगह भी नहीं बची है। आज का समय दबाव,भागदौड़ व चुनौतियों का है। लोग मशीनी जीवन जी रहे हैं,रिश्ते-नाते बिखर रहे हैं,तो जब प्रेम व भावनाएं समाज से विलुप्त होंगी,तो ऐसे में स्वाभाविक रूप से प्रेम कहानियों का सृजन भी कम होगा। वास्तव में साहित्य में वही समाहित किया जाता है,जो समाज में घटित होता है। ऐसे में कहानीकार भी प्रेम के कथ्य के स्थान पर यथार्थवाद, प्रयोगवाद, विसंगतियों व पतन को कहानियों में समेटना कहीं अधिक पसंद कर रहे हैं।
सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कथाकार रशीद गौरी( राजस्थान) ने कहा कि आज के संदर्भ में सवाल ‘समकालीन साहित्य में कहां खो गई प्रेम कहानियां ?’ एक जरूरी हस्तक्षेप है! वास्तव में इस यक्ष प्रश्न का सहज रूप से उत्तर देना मुश्किल ही है। बदलते परिवेश में साहित्य की विधाओं ने भी करवट बदली है और इसी करवट का परिणाम हमारे सामने है। हमें निराश नहीं होना है।
कथा सम्मेलन के मुख्य वक्ता अपूर्व कुमार ने कहा कि,आज के कहानीकार अपनी कहानियों में प्रेम को प्रश्रय नहीं दे रहे हैं। उनका यह कृत्य प्रेम का गला मरोड़ने जैसा है। मैं यह कहूंगा कि वे प्रेम कहानियों की उपेक्षा कर रहे हैं। इसका कारण यह है कि हमारे भीतर प्रेम का सोता सूख रहा है।
सम्मेलन का आरंभ मुख्य अतिथि ममता शर्मा (रांची ) की कहानी ‘प्रेम-श्रेम’ से हुआ। वरिष्ठ कथाकार जयंत,ऋचा वर्मा,नरेंद्र कौर छाबड़ा ने भी अपनी बात रखी। सम्मेलन का स्वागत करते हुए सैकड़ों दर्शकों और श्रोताओं ने इस कार्यक्रम में अपनी अभिरुचि दिखलाई।

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