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पांडेय जी और दिल की दिल्लगी

लालित्य ललित
दिल्ली
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हुआ क्या चुनांचे! दिल है मांगे कुछ, सोचे कुछ। पांडेय जी ने कई दिनों से अपनी गाड़ी सड़क पर नहीं निकाली, जब से मेट्रो से दिल लगा बैठे। फिर क्या हुआ, वह बता दें आपको।
सड़क पर पांडेय जी थे और उनकी गाड़ी। आज उनका मन गाड़ी में नहीं लगा, क्योंकि डैश बोर्ड पर बैटरी लौ का साइन चमक रहा था, पांडेय जी ने सोचा कि यह भी मतदाताओं टाइप की आँख-मिचौनी होगी, पर उसके बाद जो हुआ आइए आपको बताते चलें।
आधे रास्ते पांडेय जी की गाड़ी की बत्तियाँ भरभराई, जैसे सड़क पर उसने जलभराव देख लिया हो और आगे जाने से इंकार कर दिया, कि मैं आगे नहीं जाऊंगी।
आइए, अब पांडेय जी ने क्या सोचा वह भी आपको बताते चलें:
मशक्कत-
“मशक्कत केवल शब्दों की नहीं होती,
मनुष्य निर्मित उत्पादों की खराबी की भी होती है
मसलन आप उससे जुड़े होते हैं
जैसे आप अपनी गाड़ी पर हैं
और अचानक से आपको डैश बोर्ड की बत्तियां तेजी से कथक करने को आमादा हो जाएँ,
तब क्या होगा!
आप गाड़ी साइड में लगाएंगे,
और कुछ देर बाद उसको स्टार्ट करने की कोशिश करेंगे।
इतने में कोई ज्ञानी बताएगा
भाई साहब इसकी बैटरी गई
आप हैरान परेशान होकर बुद्धिजीवी परेशानी चेहरे पर लाएंगे
पर उससे कोई फायदा नहीं होगा
आप आम आदमी बन कर बैटरी लगवाएंगे और ऑफिस चले जाएंगे
शाम को घर पहुंचने की जदोजहद्द होगी
और गाड़ी घर के नुक्कड़ पर हथियार डाल देगी
आप चारों खाने चित्त,
न इधर के रहे और न उधर के
किसी से धक्का लगवाएंगे और गाड़ी घर के भीतर सुरक्षित करेंगे
अब अगले दिन सर्विस स्टेशन की मारा-मारी
इंश्योरेंस की कागज़ी कारवाई की पड़ताल
निष्कर्ष क्या हुआ
वह भी जान लीजिए
क्रेन वाला आपकी गाड़ी को घर से उठाएगा और सर्विस स्टेशन ले जाएगा
उसका खर्च
उसके बाद सर्विस स्टेशन द्वारा लगाया गया खर्च
मोटा-मोटी मान लीजिए
गाड़ी खरीदना आसान है
उसका रख-रखाव जी का जंजाल
इसलिए जीवन में कभी भी मशक्कत शब्द से परिचित होना हो
तो बीच रास्ते में पंचर हुई गाड़ी का टायर बदल लीजिए
आपको आसानी से यह शब्द आत्मीय लगेगा
और जीवन की हकीकत से रूबरू हो जाएंगे
यह है वास्तविकता
मंथन कीजिएगा
अभी के लिए इत्ता ही
नमस्कार।”
पांडेय जी ने हेल्प लाइन को फोन लगाया तो वहाँ से आवाज आई किसी मोहतरमा की। कि “मेरा नाम शेफाली आहूजा है, बताइए मैं आपकी क्या मदद कर सकती हूँ।”
पांडेय जी ने कहा कि “मेरी गाड़ी बीच रास्ते में अटक गई है, मैं ऑफिस के लिए निकला था, अब बताइए क्या आप किसी मैकेनिक को भेज सकती हैं ?”
उधर से आवाज आई, “कृपया आप गाड़ी का नम्बर बता दीजिए, मैं अपने यहाँ से चेक कर लेती हूँ डिटेल।”
पांडेय जी परेशान थे ही, पीछे पलट कर गाड़ी का नम्बर भी बता दिया।मोहतरमा ने उन्हें २ मिनट का इंतजार करवा कर कहा, “धन्यवाद, आप मेरे कहने से लाइन पर बने रहें।” मन में तो पांडेय जी के कुछ और था, कहना तो वे चाहते थे, हम तो जी सदियों तक इंतजार कर सकने वाले जीव हैं, पर लोक-लाज के भय से कहा नहीं।
उधर से शेफाली आहूजा ने कहा “पांडेय जी, मैंने अपने यहाँ चेक
किया है, आपकी वारंटी पिछले साल खत्म हो गई है, इसलिए हम आपको रोड सर्विस की सुविधा मुहिया नहीं करवा सकते। आप हमारे नजदीक के सर्विस स्टेशन पर गाड़ी ले जाइए।”
अब पांडेय जी ने कहा,”गाड़ी हिले तो मैं चलूं।” बहरहाल गाड़ी हिल नहीं सकती और उक्त दुभाषिया सुंदरी कोई मदद नहीं कर सकी।
उधर, पांडेय जी के मोबाइल की बैटरी खत्म होने के कगार पर थी, उधर से रामप्यारी का फोन भी आ रहा था, पांडेय जी ने इतना भर कहा कि “बैटरी खत्म होने को है, जो कहना हो, संदेश भेज दो।”
सोचने लगे, पांडे जी जब-जब जो- जो होना, वह तभी होगा, उससे पहले नहीं।
क्या माया है कुदरत की, कहीं धूप है तो कहीं छाया है।
पांडेय जी को दयाल बाबू की याद आई, कहने लगे थे वे एक बार।
घर ले लिया, बैंक से कर्जा भी। जब रिटायर होंगे तो पल्ले कुछ नहीं आएगा, सारा पैसा बैंक ले जाएगा। पांडेय जी ने कहा, “क्या यह कम बात है जो दिल्ली जैसे महानगर में घर हो गया, वह भी अपना।”
और यहाँ अपने पांडेय जी मन से खुश थे कि सर्विस में रहते हुए उन्होंने अपनी बेटी का ब्याह कर दिया, बर्शते रामप्यारी जी का विशेष योगदान रहा। वैसे भी पत्नियाँ हमेशा पतियों का मार्ग सूचक होती हैं, भले ही उन्हें समय रहते मान- सम्मान न मिले। यह पांडेय जी की अपनी मौलिक सोच है और सोच भी ऐसी, वह कभी भी आ सकती है।
आज पांडेय जी बैठे हुए थे अपने कमरे में;उनके सहयोगी टसल सिंह कुकरेजा ने एसी का तापमान कम कर दिया, उसका घाटा यह होता, ठंड लगती और हालात बिगड़ जाते, पांडेय जी के भी और कमरे में अयाचित मेहमानों के भी।
चपरासी चाय लाता तो वह मिनटों में ही लस्सी में तब्दील हो जाती, पांडेय जी कहते “क्यों भाई टसल सिंह कुकरेजा, तुम्हें ज्यादा गर्मी लगती है क्या आजकल! ऐसा किया करो कुछ दिन शाकाहारी बन जाओ, किस्मत चमक जाएगी।”
कारण यह कि कुकरेजा के आसपास मुस्लिम मित्रों का जमावड़ा था, वे आए दिन मांसाहारी भोजन बनाया करते, तो कुकरेजा को भी आदत लग गई मांसाहारी भोजन खाने की। उससे क्या होता गर्मी ज्यादा लगती, पर अपने पांडेय जी ठहरे विशुद्ध शाकाहारी। जरा तेज़ होता एसी तो घंटे में २ बार वे लघुशंका का निवारण कर आते।आते ही कुकरेजा को कहते, “क्या कुकरेजा, हमारी जान लोगे क्या! कुछ ख्याल रखो हमारा। काहे जान लेने पर तुले हुए हो!”
कुकरेजा शरमा जाता।
एक सेमिनार के सिलसिले में कुकरेजा को बड़े साहब श्रीनगर भेजना चाहते हैं। सरकारी दफ्तर है, फाइल चलेगी तो बात होगी। और बात होगी तो चपरासी हरकत में आएगा।
कुकरेजा नए-नए दफ्तर में अस्थाई कर्मचारी नियुक्त हुए थे। उन्हें पांडेय जी के कमरे में इसलिए बिठाया गया, कि पांडेय जी नए व्यक्ति को तौर-तरीके भी सीखा देंगे।
कुकरेजा सीखने में अव्वल था, पर नया है और पांडेय जी से तकरीबन उम्र में पूरे २४ साल छोटा। वह पांडेय जी का सम्मान तो करता ही था। वह यह कोशिश भी करता कि चाय एक नहीं, हमेशा ३ कप मंगवाया करता। एकाध बार तो पांडेय जी ने चाय पी ली।
रामप्यारी ने शाम को पांडेय जी की क्लास लगाई, “जो अस्थाई आदमी है, उसका खर्चा मत कराया करो, आप ही पिला दिया करो।”

पांडेय जी ने सर झुका कर कहा, “हुकम की तामील होगी।” और उन्होंने नियम- कायदे का पालन भी किया।