आदर्श पाण्डेय
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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धर्म-युद्ध में योद्धा हूँ मैं,
कर्म-युद्ध का रास्ता हूँ मैं।
चाल मेरी शतरंज जैसी,
ढाल मेरी तलवार है।
मार्ग मेरे ऐसे खुलते हैं,
जैसे सूरज-चाँद निकलते हैं।
मैं दुनिया में ऐसे छाऊँ,
जैसे बदल में तारे चमके।
मैं हर घाट का पानी हूँ,
बहता हुआ एक धारा हूँ।
कोई कहे गंगा जल हूँ,
कोई कहे बहता पानी।
धर्म-युद्ध में योद्धा हूँ मैं,
कर्म-युद्ध का रास्ता हूँ मैं॥