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पाठ्यक्रम का ऐतिहासिक जोड़-घटाव

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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वेद-शास्त्रों में कहा गया है, ‘वही विद्या ज्ञान सागर है जिसमें समस्त प्रकार के जीव हैं और बड़े छोटे को आहार बना जीवित रहते हैं।’
नित्य नए चर्चा के विषय कहां से उत्पन्न किए जाएं, जिससे समस्याओं में ऐसे पेचीदा तथ्यों को जोड़ा या घटाया जाए कि समस्या का समाधान किसी भी तथ्य से हल ही न हो सके। होना तो यह चाहिए कि, सही मूल्यांकन कर ऐतिहासिक प्रसंगों का उचित अवलोकन कर तत्कालीन तारीखों के साथ परोसा जाना चाहिए, लेकिन बाल की खाल उखाड़ने की क्रियाओं में किन-किन का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व है, कहना बहुत ही टेढ़ी खीर समान है।
कालखंड में हुए युद्ध तो युद्ध हैं, जो २ समुदायों के बीच में होता है। जब भी चर्चा होगी युद्ध की तो, दोनों पक्षों की चर्चा होगी ही। निश्चय ही है एक की जीत और दूसरे की पराजय भी होगी ही। तत्कालीन राजाओं व शत्रुओं को जिस संज्ञा से अभिहित किया जाता रहा, वही इतिहास में बताना भी पड़ेगा। और पुराने विभिन्न इतिहासकारों की किताबों में तत्कालीन प्रसंग कहीं पर विक्रम संवत से तारीखें हैं और कहीं पर ईस्वी पूर्व के अनुसार हैं, या कहीं पर प्रादेशिक इतिहासकारों द्वारा हिजरी या शक संवत के अनुसार भी लिखी हैं, लेकिन यह मानने में कोई संदेह नहीं कि अंग्रेजी इतिहासकारों की तिथियों व प्रसंगों को प्रमाणिक माना जाता है।
वर्तमान में आधुनिक इतिहास ही इतना अधिक है कि, विद्यार्थी किस समय को गहनता से पढ़े, यह विचारणीय प्रश्न है ? कंप्यूटर, डिजिटल, इलेक्ट्रॉनिक या अन्य विज्ञान संबंधी अनेकों विषय में अधिक रुचि ले या प्राचीन इतिहास को घोट-घोट पिए। इतिहास तत्कालीन चेतना से वर्तमान चेतना को सतर्क करता है तो, विज्ञान रोजी-रोटी देता है। दोनों का ज्ञान महत्वपूर्ण है। अत: अंतर इतना है कि, ऐतिहासिक विज्ञान मानव धार्मिक सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन कर समकालीन समाज, राजनीति, धर्म आदि को सजगता का बोध करवाता है तो दूसरा आधुनिक सुविधाओं के जीवनयापन मूल्य निर्धारित करता है।
इतिहास का सही अवलोकन कर ही विद्यार्थियों को अध्ययन करवाया जाना चाहिए। इतिहास गवाह है हर उस तारीख का जो समाज व राष्ट्र को नैतिक मूल्यों से जोड़ता हुए भविष्य मार्गदर्शन करता है। पाठ्यक्रम में इतिहास के प्रसंग का जोड़-घटाव ऐसा है जैसे-
‘समय का हरेक प्रसंग मद्धम दीप होता है।
इतिहास वर्तमान के रगों में रेंगता रहता है॥
रचता है निर्भीक हो भविष्य की नींव ये,
मुख बदल-बदल लौ ले मुड़-मुड़ आता है॥’

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