डॉ. संगीता जी. आवचार
परभणी (महाराष्ट्र)
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पुरुष तुम हो पैदा होते हो स्त्री से,
पुरुष तुम बेटे बनते हो माँ से
पुरुष तुम पति बनते हो पत्नी से,
पुरुष तुम भाई बनते हो बहन से।
पुरुष तुम बाप बनते हो बेटे-बेटी के,
पुरुष तुम सखा बनते हो द्रौपदी के कृष्ण से!
पुरुष तुम्हारी पहचान है स्त्री से…,
और स्त्री की पहचान है तुमसे…।
तो फिर ये भेद किसने बनाए है हुए ?
तुम क्यों इसके जिम्मेदार हो ठहराए गए ?
धुआं देखा है वहीं से निकलते हुए!,
जहाँ आग कोई है लगाए हुए॥